बेंगलुरू की एक विशेष अदालत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ दायर एक निजी शिकायत को खारिज कर दिया है। यह शिकायत ज़ियाउर रहमान नामक एक व्यक्ति द्वारा दायर की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि प्रधानमंत्री ने बांसवाड़ा में एक चुनाव प्रचार के दौरान अपमानजनक और भड़काऊ भाषण दिया था। विशेष अदालत के इस फैसले से उक्त कानूनी मामला समाप्त हो गया है, जोकि प्रधानमंत्री के चुनावी बयानों पर ध्यान कराने वाला एक महत्वपूर्ण मुद्दा था।
शिकायत में ज़ियाउर रहमान ने आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री मोदी के भाषण ने समाज के एक विशेष वर्ग को लक्ष्यित किया था और इसका स्वरूप अपमानजनक एवं भड़काऊ था। रहमान का दावा था कि यह भाषण समाज में अशांति फैलाने और लोगों के बीच दुर्भाव उत्पन्न करने के उद्देश्य से दिया गया था। यह आरोप ऐसे समय पर लगाए गए थे जब मोदी की पार्टी भारतीय जनता पार्टी देशभर में चुनाव प्रचार कर रही थी, और यह भाषण उन्हीं चुनावी रैलियों में से एक के दौरान दिया गया था।
कोर्ट ने इस मामले की पूरी विवेचना के बाद फैसला सुनाया। न्यायाधीश ने कहा कि शिकायतकर्ता के पास इस बात का पर्याप्त प्रमाण नहीं है कि प्रधानमंत्री का भाषण भड़काऊ या अपमानजनक था। न्यायालय ने कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान दिए गए भाषणों में राजनीतिक दृष्टिकोण होते हैं और इन्हें इस रूप में देखा जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता के आरोप राजनीति से प्रेरित हो सकते हैं और केवल भाषण के आधार पर किसी पर आरोप लगाना समाज में गलत संदेश भेज सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मामले पर सीधे तौर पर कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन उनके पार्टी और सहयोगी नेताओं ने अदालत के इस फैसले का स्वागत किया। बीजेपी के नेताओं का कहना था कि यह फैसला साबित करता है कि प्रधानमंत्री ने हमेशा संविधान और कानून के तहत ही काम किया है। उन्होंने यह भी कहा कि विपक्षी पार्टियों और उनके समर्थकों के द्वारा ऐसे झूठे आरोप लगाकर प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी की छवि को खराब करने की कोशिश की जा रही है।
कानूनी विशेषज्ञों ने भी अदालत के इस फैसले पर अपनी प्रतिक्रियाएँ दी हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अदालत ने सही निर्णय लिया है क्योंकि चुनावी भाषणों को संदेह के लाभ का अधिकार दिया जाना चाहिए। वहीं, कुछ अन्य विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में इस तरह की शिकायतों का ठीक प्रकार से अवलोकन किया जाना चाहिए ताकि किसी भी पक्ष को अनुचित फायदा न मिले।
इस अदालत के फैसले का राजनीति और न्याय प्रणाली पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। एक ओर, यह फैसला राजनीतिक नेताओं को आश्वासन देगा कि उनके चुनावी भाषणों को स्वतंत्रता मिलेगी; वहीं दूसरी ओर, यह उम्मीदवारों को भी सावधानी से बोलने के लिए प्रेरित करेगा। न्यायालय के इस फैसले ने एक बार फिर यह दर्शाया है कि कानून और संविधान से ऊपर कोई नहीं है। इससे भारतीय लोकतंत्र में न्यायिक प्रणाली के महत्व को भी दोहराया गया है।
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