बेंगलुरू कोर्ट ने प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ निजी शिकायत को किया खारिज

जुलाई 17, 2024 17 टिप्पणि Priyadharshini Ananthakumar

बेंगलुरू की एक विशेष अदालत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ दायर एक निजी शिकायत को खारिज कर दिया है। यह शिकायत ज़ियाउर रहमान नामक एक व्यक्ति द्वारा दायर की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि प्रधानमंत्री ने बांसवाड़ा में एक चुनाव प्रचार के दौरान अपमानजनक और भड़काऊ भाषण दिया था। विशेष अदालत के इस फैसले से उक्त कानूनी मामला समाप्त हो गया है, जोकि प्रधानमंत्री के चुनावी बयानों पर ध्यान कराने वाला एक महत्वपूर्ण मुद्दा था।

शिकायत के आरोप

शिकायत में ज़ियाउर रहमान ने आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री मोदी के भाषण ने समाज के एक विशेष वर्ग को लक्ष्यित किया था और इसका स्वरूप अपमानजनक एवं भड़काऊ था। रहमान का दावा था कि यह भाषण समाज में अशांति फैलाने और लोगों के बीच दुर्भाव उत्पन्न करने के उद्देश्य से दिया गया था। यह आरोप ऐसे समय पर लगाए गए थे जब मोदी की पार्टी भारतीय जनता पार्टी देशभर में चुनाव प्रचार कर रही थी, और यह भाषण उन्हीं चुनावी रैलियों में से एक के दौरान दिया गया था।

कोर्ट का फैसला

कोर्ट का फैसला

कोर्ट ने इस मामले की पूरी विवेचना के बाद फैसला सुनाया। न्यायाधीश ने कहा कि शिकायतकर्ता के पास इस बात का पर्याप्त प्रमाण नहीं है कि प्रधानमंत्री का भाषण भड़काऊ या अपमानजनक था। न्यायालय ने कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान दिए गए भाषणों में राजनीतिक दृष्टिकोण होते हैं और इन्हें इस रूप में देखा जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता के आरोप राजनीति से प्रेरित हो सकते हैं और केवल भाषण के आधार पर किसी पर आरोप लगाना समाज में गलत संदेश भेज सकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिक्रिया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिक्रिया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मामले पर सीधे तौर पर कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन उनके पार्टी और सहयोगी नेताओं ने अदालत के इस फैसले का स्वागत किया। बीजेपी के नेताओं का कहना था कि यह फैसला साबित करता है कि प्रधानमंत्री ने हमेशा संविधान और कानून के तहत ही काम किया है। उन्होंने यह भी कहा कि विपक्षी पार्टियों और उनके समर्थकों के द्वारा ऐसे झूठे आरोप लगाकर प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी की छवि को खराब करने की कोशिश की जा रही है।

कानूनी विशेषज्ञों की प्रतिक्रियाएँ

कानूनी विशेषज्ञों की प्रतिक्रियाएँ

कानूनी विशेषज्ञों ने भी अदालत के इस फैसले पर अपनी प्रतिक्रियाएँ दी हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अदालत ने सही निर्णय लिया है क्योंकि चुनावी भाषणों को संदेह के लाभ का अधिकार दिया जाना चाहिए। वहीं, कुछ अन्य विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में इस तरह की शिकायतों का ठीक प्रकार से अवलोकन किया जाना चाहिए ताकि किसी भी पक्ष को अनुचित फायदा न मिले।

भविष्य में होने वाले प्रभाव

इस अदालत के फैसले का राजनीति और न्याय प्रणाली पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। एक ओर, यह फैसला राजनीतिक नेताओं को आश्वासन देगा कि उनके चुनावी भाषणों को स्वतंत्रता मिलेगी; वहीं दूसरी ओर, यह उम्मीदवारों को भी सावधानी से बोलने के लिए प्रेरित करेगा। न्यायालय के इस फैसले ने एक बार फिर यह दर्शाया है कि कानून और संविधान से ऊपर कोई नहीं है। इससे भारतीय लोकतंत्र में न्यायिक प्रणाली के महत्व को भी दोहराया गया है।

17 जवाब

Satya Pal
Satya Pal जुलाई 17, 2024 AT 04:27

देखिये, अगर आप ये समझते हैं कि एक राजनीतिक भाषण को चुनिंदा रूप से "भड़काऊ" कह देना न्यायिक प्रक्रिया को कमजोर कर देता है तो आप वाकई में इतिहास की गहरी नहरों में उतर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि कोई भी हर शब्द का प्रत्येक त्रुटि को लेकर अदालत में केस फाइल कर सकता है; लेकिन अगर आरोप में ठोस सबूत नहीं है तो न्यायाधीश का फैसला स्वाभाविक रूप से खारिज हो जाता है। आपके जैसे लोग अक्सर भावनाओं के झमेले में फंसकर कानूनी तर्कों को भूल जाते हैं।

Partho Roy
Partho Roy जुलाई 26, 2024 AT 13:27

भाईसाहब, बेंगलुरू की इस अदालत ने जो फैसला सुनाया है वह न सिर्फ़ एक कानूनी निर्णय है बल्कि हमारे लोकतांत्रिक प्रक्रिया की एक तस्वीर भी है। सबसे पहले तो यह समझना ज़रूरी है कि चुनावी भाषणों में राजनीतिक झलक़ तो रहती ही है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हर शब्द को लेकर हिंसा का आरोप लगाया जा सकता है। अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता के पास पर्याप्त प्रमाण नहीं हैं, यह बात खुद ही स्पष्ट करती है कि मुकदमा दायर करने से पहले ठोस दस्तावेज़ीकरण होना चाहिए।
ज्यादा सोचें तो यह फैसला हमें यह भी सिखाता है कि सार्वजनिक मंच पर बोलने वाले को भी कुछ हद तक सुरक्षा मिलती है, बशर्ते वह अपने शब्दों का दुरुपयोग न करे।
वहीं दूसरी तरफ, कुछ विशेषज्ञों ने सही कहा कि भविष्य में इस तरह की शिकायतों को अधिक बारीकी से देखना चाहिए ताकि कोई नायाब अधिकार या ताक़त का दुरुपयोग न हो।
लेकिन यह भी सच है कि राजनीति में अक्सर व्यक्तिगत गुत्थियां बन जाती हैं और लोग इन्हें कानूनी रूप में बदलने की कोशिश करते हैं।
अगर हम इस बात को देखें कि आम जनता के लिए इस फैसले का क्या मतलब है, तो यह एक तरह से स्पष्ट करता है कि लोकतंत्र में हर आवाज़ को सुनने का अधिकार है, चाहे वह कितनी भी तीखी क्यों न हो।
साथ ही यह पहलू भी है कि चुनावी समय में भाषणों को भावनात्मक औज़ार माना जाता है, इसलिए उनका विश्लेषण करते समय हमें भावनात्मक रंग को भी ध्यान में रखना चाहिए।
दूसरी ओर, यह भी कहा गया है कि इस प्रकार के मामलों में न्यायालय का दायित्व यह है कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सार्वजनिक सुव्यवस्था के बीच संतुलन बनाये रखे।
अब बात आती है उन लोगों की जो इस निर्णय को राजनीतिक पक्षपात मानते हैं, उनके लिए यह एक चुनौती है कि वे अपनी राय को अधिक तथ्यात्मक आधार पर रखें।
आखिरकार, एक स्वस्थ लोकतंत्र में ऐसी बहसें ही जरूरी होती हैं, क्योंकि यही बहसें हमें आगे बढ़ने का मार्ग दिखाती हैं।
समाप्ति में, मैं यही कहूँगा कि चाहे आप इसे किस नजरिए से देखें, यह फैसला न केवल एक अदालत का निर्णय है बल्कि एक सामाजिक संदेश भी है कि न्याय प्रणाली में विचारों की विविधता का सम्मान किया जाता है।

Ahmad Dala
Ahmad Dala अगस्त 4, 2024 AT 22:27

देखिए, इस मामले में न्यायालय ने एक सूक्ष्म बिंदु को उजागर किया है-विकीर्णीय भाषणों को अक्सर राजनीतिक इरादों से देखना ज़रूरी है, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि शब्दों का प्रयोग सामाजिक बाध्यताओं को भी प्रतिबिंबित करता है। सामान्यतः, चुनावी रैलियों में उन्माद और उत्साह का माहौल बना रहता है, जिसका अर्थ यह नहीं कि हर वक्ता को अत्यधिक प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। लेकिन यहाँ पर, यदि कोई वास्तविक प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाता, तो अदालत का खारिज करना वैध और संतुलित लगता है। इस प्रकार के निर्णय भविष्य में न्यायिक प्रक्रियाओं को अधिक स्पष्ट दिशा दे सकते हैं, जिससे अनावश्यक कानूनी उलझनों से बचा जा सके।

RajAditya Das
RajAditya Das अगस्त 14, 2024 AT 07:27

बहुत बढ़िया फैसला 🤔, बस यही चाहिए था।

Harshil Gupta
Harshil Gupta अगस्त 23, 2024 AT 16:27

सभी को नमस्ते, इस मामले में एक बात स्पष्ट है कि न्यायालय ने कानूनी मानदंडों को प्राथमिकता दी है। यदि आप संविधान के मूल सिद्धांतों को याद रखेंगे तो समझेंगे कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ ही सामाजिक संतुलन भी जरूरी है। यह निर्णय संभावित रूप से भविष्य के समान मामलों में एक दिशा-निर्देश का कार्य करेगा, जिससे राजनीति और न्याय के बीच संतुलन बना रहे।

Rakesh Pandey
Rakesh Pandey सितंबर 2, 2024 AT 01:27

देखो भाई, मुकदमा दायर करने से पेहले प्रूफ इकट्ठा करो, नहीं तो कोर्ट का खारिज करना भी सही है 🙂. वैसे तुम लोग हमेशा ऐसे मुद्दे उठाते हो जो सिर्फ़ राजनीति को बगड़ाने के लिए होते हैं, थोड़ा सोचो.

Simi Singh
Simi Singh सितंबर 11, 2024 AT 10:27

क्या आप नहीं समझते कि इस कोर्ट के फैसले के पीछे कोई छुपा एजेंडा हो सकता है? अक्सर ऐसा होता है कि बड़े ऊँचे लोग बैकग्राउंड में ही चीज़ों को मोड़ते हैं, और आम जनता को सिर्फ़ एक सतही फैसला दिखाया जाता है। यह अदालत भी किसी बड़े खेल का हिस्सा हो सकता है जहाँ वास्तविक शक्ति संरचना को बर्बाद नहीं किया जाता।

Rajshree Bhalekar
Rajshree Bhalekar सितंबर 20, 2024 AT 19:27

दिल टूट गया, बहुत दुखद.

Ganesh kumar Pramanik
Ganesh kumar Pramanik सितंबर 30, 2024 AT 04:27

भाई लोगों, इस कोर्ट के फैसले से पता चलता है कि लोकतंत्र में जबरदस्ती के बजाय बातों को समझने की जरूरत है। राजनीति में अक्सर आवाज़ें ऊँची होती हैं, परन्तु न्याय हमेशा संतुलन बनाता है।

Abhishek maurya
Abhishek maurya अक्तूबर 9, 2024 AT 13:27

देखिए, यह निर्णय न केवल एक कानूनी मापदंड स्थापित करता है बल्कि यह भी दर्शाता है कि एक लोकतांत्रिक समाज में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सम्मानित किया जाता है। फिर भी, यह जरूरी है कि हम अपनी शब्दावली को सटीक रखें ताकि भविष्य में ऐसे विवाद न उत्पन्न हों।

Sri Prasanna
Sri Prasanna अक्तूबर 18, 2024 AT 22:27

यह फैसला तो बिल्कुल ही असंगत है, यह न्याय की भावना को ठेस पहुंचाता है। हमें इस तरह के निर्णयों के खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए।

Sumitra Nair
Sumitra Nair अक्तूबर 28, 2024 AT 07:27

🙏 माननीय न्यायालय द्वारा दिया गया यह निर्णय वास्तव में न्यायसंगत है। इसके माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि लोकतंत्र में आवाज़ों की विविधता को सम्मान दिया जाता है और केवल ठोस साक्ष्यों के आधार पर ही कार्रवाई की जाती है। इस प्रकार के निर्णय भविष्य में समान मामलों में मार्गदर्शन करेंगे। 🙏

Ashish Pundir
Ashish Pundir नवंबर 6, 2024 AT 16:27

फैसला ठीक है, पर कुछ लोग फिर भी असंतोष जताएंगे।

gaurav rawat
gaurav rawat नवंबर 16, 2024 AT 01:27

अरे भाई, सब ठीक रहेगा 😊. न्याय का सम्मान करना चाहिए और इस फैसले को एक सकारात्मक कदम मानना चाहिए।

Vakiya dinesh Bharvad
Vakiya dinesh Bharvad नवंबर 25, 2024 AT 10:27

यह निर्णय हमारे सांस्कृतिक विविधता की रक्षा करता है, क्योंकि भाषा और अभिव्यक्ति में विविधता को मान्यता दी जानी चाहिए।

Aryan Chouhan
Aryan Chouhan दिसंबर 4, 2024 AT 19:27

यो फैसला तो बिलकुल बेकार है 😂. सब बेवकूफी कर रहे है।

Tsering Bhutia
Tsering Bhutia दिसंबर 14, 2024 AT 04:27

दोस्तों, इस निर्णय से हमें सीख मिलती है कि कानूनी प्रक्रियाओं में सबूतों की महत्ता है। आशा है कि भविष्य में अधिक पारदर्शी चर्चा होगी।

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