एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा में 'जय फिलिस्तीन' नारा लगाकर न केवल एक विवाद खड़ा कर दिया है, बल्कि बीजेपी के नेतृत्व में मांग उठने लगी है कि उन्हें संविधान के आधार पर अयोग्य घोषित किया जाए। यह मामला अत्यंत ही संवेदनशील बन चुका है और इसकी जड़ें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 102 में समाहित हैं।
बीजेपी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने दावा किया है कि ओवैसी का यह कदम संविधान के अनुच्छेद 102 के अंतर्गत अयोग्यता के दायरे में आता है। अनुच्छेद 102 के अनुसार, कोई सदस्य संसद का सदस्य पद तभी तक धारण कर सकता है जब तक वह भारत का नागरिक हो और किसी अन्य देश के प्रति निष्ठा न दिखाए। अयोग्यता के अन्य आधारों में लाभ का पद धारण करना, मानसिक रूप से अस्वस्थ होना, दिवालिया होना, और विदेशी नागरिकता स्वेच्छा से लेना शामिल हैं। मालवीय के अनुसार, ओवैसी का 'जय फिलिस्तीन' नारा फिलिस्तीन के प्रति निष्ठा को दर्शाता है।
ओवैसी ने अपने बचाव में कहा है कि उनका यह नारा केवल उत्पीड़ित लोगों के प्रति सहानुभूति प्रकट करने के लिए था। उनके अनुसार, फिलिस्तीन में लोगों के साथ जो कुछ हो रहा है, उसे देखते हुए यह समर्थन नितांत आवश्यक है। वे यह भी स्पष्ट करते हैं कि यह नारा किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा या उनकी नागरिकता को दर्शाने के लिए नहीं था। मीडिया को संबोधित करते हुए ओवैसी ने यह भी कहा कि वे संविधान का पूरा सम्मान करते हैं और उनका यह कदम किसी भी संविधानिक नियम का उल्लंघन नहीं करता।
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा है कि उन्हें कई सदस्यों से ओवैसी के नारे को लेकर शिकायतें प्राप्त हुई हैं। रिजिजू ने यह भी कहा कि मामले की गंभीरता को देखते हुए और संविधान के प्रावधानों का पालन करने के उद्देश्य से वे इस पर जांच करेंगे। यह जांच यह तय करेगी कि ओवैसी का कार्य संविधानिक नियमों के खिलाफ था या नहीं।
इस मामले ने संसद में हर तरफ से प्रतिक्रियाएं बटोरी हैं। जहां बीजेपी सांसदों ने इस नारे की कड़ी निंदा की है, कुछ अन्य विपक्षी दलों ने ओवैसी का समर्थन भी किया है। उनका यह मानना है कि उठाया गया नारा केवल मानवाधिकारों के समर्थन में था। कांग्रेस पार्टी के कुछ नेताओं ने भी इस मामले को अत्यधिक महत्वपूर्ण बताते हुए विस्तृत जांच की मांग की है।
यह विवाद हमें अपने संविधान के प्रति सम्मान और संसद की मर्यादा का पुनः परीक्षण करने को भी बाध्य करता है। संसद में ऐसे नारे लगाने से न केवल राजनीतिक माहौल गरमाता है, बल्कि यह संविधानिक प्रावधानों की भी परीक्षा लेता है।
अब देखना यह है कि संसदीय प्रक्रिया इस मामले में किस दिशा में आगे बढ़ती है। यदि ओवैसी को अयोग्य घोषित किया जाता है, तो यह मामला एक नई पहल और संविधानिक प्रावधानों को सशक्त बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
मामले की स्थिति | कार्रवाई |
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शिकायत प्राप्त | संसदीय कार्य मंत्री द्वारा नियमों की जांच |
ओवैसी का समर्थन | मानवाधिकारों का समर्थन |
विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया | संविधानिक जांच की मांग |
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