जब बात खाने-पीने की संस्कृति की आती है, तो यह भारत के विभिन्न हिस्सों में भोजन से जुड़ी रीति‑रिवाज, सामाजिक व्यवहार और मौसमी बदलावों का समुच्चय है. इसे अक्सर भोजन परम्परा कहा जाता है, क्योंकि यह सिर्फ खाना नहीं, बल्कि पहचान, त्योहार और स्थानीय जीवनशैली से भी गहराई से जुड़ी होती है। यही कारण है कि आप किसी इलाके की यात्रा पर, उसके खाने‑पीने की शैली को देखकर ही उसकी संस्कृति का पहला अंदाज़ा लगा सकते हैं। खाने-पीने की संस्कृति इसलिए हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में एक नैतिक कम्पास की तरह काम करती है—क्या खाएँ, कब ख़ाएँ, किस साथ में—इन सभी सवालों के जवाब देती है।
इस संस्कृति के आधार में भारतीय व्यंजन, विभिन्न प्रदेशों की अनूठी रेसिपी और स्वाद प्रोफ़ाइल हैं। उत्तर में दाल‑व्रथ और घी‑वाले पराठे, पश्चिम में खट्टी मीठी ढोकला, दक्षिण में इडली‑साम्बर और मसालों से भरपूर समुद्री भोजन—इन्हें सभी एक ही बड़े ढांचे में गिना जाता है। इस ढांचे में स्थानीय बाज़ार, जहाँ ताज़ा सब्जी, मसाला और मौसमी फल-भोजन मिलते हैं का विशेष स्थान है, क्योंकि बाज़ार ही वह जगह है जहाँ खाने‑पीने की संस्कृति वास्तविक रूप में रोज़मर्रा की जरूरतों से मिलती‑जुलती है। जब आप किसी शहर के सड़कों पर चलते हैं और वहाँ के स्ट्रीट फ़ूड को चखते हैं, तो आप सीधे उस इलाके की सामाजिक धारा को समझ रहे होते हैं।
त्योहार भी इस संस्कृति के अभिन्न भाग हैं। त्योहार, जैसे मिठाई‑भरी दीवाली, सर्दियों में गुड़‑की मिठास, या गर्मी में गर्म‑गर्म लस्सी सिर्फ समय का निशान नहीं, बल्कि भोजन के माध्यम से भावनात्मक जुड़ाव का एक जरिया हैं। इन अवसरों पर पकाए जाने वाले व्यंजन अक्सर सीमित समय के लिए तैयार होते हैं—जैसे दीवाली पर जलेबी‑गजिया या होली पर ठंडा दही‑भल्ला—और यही विशेषता उन्हें यादगार बनाती है। इसके अलावा, इन समारोहों का असर अक्सर खेल या मनोरंजन इवेंट्स में भी देखा जाता है; बड़े‑बड़े मैचों में स्टेडियम के किनारे काबाब‑स्टॉल और पापड़‑चटनी की गूँज, या फिल्म‑फ़ेस्टिवल में पॉपकॉर्न‑स्टैंड, सभी खाने‑पीने की संस्कृति को सार्वजनिक रूप से पेश करने का एक तरीका है।
इसी कारण, जब आप इस टैग में संकलित लेखों को पढ़ेंगे, तो आपको केवल समाचार नहीं, बल्कि उन कहानियों का एक जीवंत ताना‑बाना मिलेगा जो भोजन के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक ढाँचों को जोड़ते हैं। चाहे वह दार्जिलिंग में अचानक हुई बाढ़ से प्रभावित चाय‑बाग हो, या किसी प्रमुख खेल प्रतियोगिता में प्रशंसकों की जलेबियों की कतार—सबमें खाने‑पीने की संस्कृति की छाप रहेगी। आगे के लेखों में हम विभिन्न क्षेत्रों की विशिष्ट रेसिपी, उनके इतिहास, मौसमी बदलाव और बाज़ार‑जीवन की झलक देखेंगे, जिससे आपको अपना अगला खाने‑पीने का अनुभव चुनने में मदद मिलेगी।
गूगल ने 11 अक्टूबर को भारत के इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के लिए इडली को सम्मानित करने वाला डूडल लॉन्च किया, जिससे सांस्कृतिक जागरूकता और खाद्य ट्रेंड दोनों में उछाल आया।
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