अनुरा कुमार डिसानायके, एक 55 वर्षीय मार्क्सवादी नेता, ने श्रीलंका के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली है। उनकी यह जीत श्रीलंका की राजनीतिक धारा में एक बड़ा बदलाव दर्शाती है जो वर्षों से कुछ परिवारों और दलों द्वारा ही हावी रही है। डिसानायके, राष्ट्रीय जनशक्ति (एनपीपी) गठबंधन का नेतृत्व करते हैं, जिसमें जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) शामिल है। जेवीपी एक ऐसा पार्टी है जो अपने गहरे मार्क्सवादी विचारों और हिंसात्मक विद्रोहों के इतिहास के लिए जाना जाता है।
डिसानायके ने 1980 के दशक के अंत में जेवीपी में शामिल हुए और 2014 में इसके नेता बने। उनके नेतृत्व में, इस पार्टी ने अपने उग्रवादी अतीत से स्वयं को दूर करने का प्रयास किया है और अपने मार्क्सवादी विचारधारा को मध्यम करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। जेवीपी दो सशस्त्र विद्रोहों में शामिल रही है, जिसके परिणामस्वरूप हजारों लोग मारे गए। हालाँकि, डिसानायके ने इन पिछले कृत्यों के लिए खेद व्यक्त किया है और भ्रष्टाचार विरोधी और गरीब समर्थक पहलों पर ध्यान केंद्रित किया है।
डिसानायके की जीत को पुराने राजनीतिक अभिजात वर्ग का प्रतिकार माना जा रहा है और तात्त्विक परिवर्तन की इच्छा को चिह्नित करती है। 2022 की आर्थिक संकट, जो व्यापक गरीबी और जन असंतोष का कारण बना, उनके चुनावी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह संकट जन के बड़े प्रदर्शनों में परिणत हुआ जिसने राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे और उनके प्रभावशाली परिवार को बाहर निकाल दिया, जिन्हें भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा।
दो दौर की गिनती के बाद डिसानायके 42.3% वोट के साथ विजेता बने। विपक्षी नेता सजित प्रेमदासा दूसरे स्थान पर रहे, जबकि निवर्तमान राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे पहले दौर में ही बाहर हो गए। डिसानायके ने संसद को भंग करने और अपनी नीति एजेंडा को लागू करने के लिए नए संसदीय चुनाव कराने का संकल्प लिया है।
जेवीपी की हिंसात्मक अतीत और नई प्रशासन में संभावित प्रभाव के बारे में चिंता के बावजूद, डिसानायके ने पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की प्रतिबद्धता पर जोर दिया है। उनकी जीत को एक महत्वपूर्ण राजनीतिक भूकंप के रूप में देखा जा रहा है, जिसने पहली बार एक गैर-अभिजात व्यक्ति को श्रीलंका में राष्ट्रपति पद पर आसीन किया है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि डिसानायके की जीत परिवर्तन की इच्छा और दशकों से शासन करने वाले स्थायी राजनीतिक दलों की अस्वीकृति को दर्शाती है।
डिसानायके का औद्योगिकरण की दिशा में एक उल्लेखनीय दृष्टिकोण भी है। उन्होंने औद्योगिक क्रांति की आवश्यकता पर गौर किया और यह सुनिश्चित करने के लिए जोर दिया कि श्रमिक और गरीब वर्गों को इसका लाभ पहुंचे। उनका विश्वास है कि श्रीलंका की आर्थिक विकास की कुंजी श्रमिकों और निजीकरण के मार्ग पर नहीं, बल्कि स्थायी और समावेशी नीतियों में है, जो समाज के सभी वर्गों को लाभान्वित करें।
श्रीलंका में औद्योगिक परियोजनाओं और नई आर्थिक नीतियों को लागू करने की दिशा में डिसानायके की नीतियां प्रमुख भूमिका निभाएंगी। उन्होंने विदेश में नौकरीपेशा श्रीलंकाई नागरिकों के लिए भी एक नए रोजगार योजना का प्रस्ताव किया है जिससे विदेशी ना सिर्फ अपनी कुशलता बढ़ा सकेंगे, बल्कि अपने देश की अर्थव्यवस्था को भी योगदान दे सकेंगे।
अनुरा कुमार डिसानायके की यह ऐतिहासिक जीत श्रीलंका की राजनीति में एक नया युग प्रारंभ कर रही है, एक ऐसा युग जो पारदर्शिता, न्याय, और समावेशिता पर ध्यान केंद्रित करता है। जनता की उम्मीदें उनसे बहुत बड़ी हैं और यह देखना दिलचस्प होगा कि वे अपनी प्रतिबद्धताओं पर कितना खरे उतरते हैं।
14 जवाब
डिसानायके की जीत भारत के कई लोगों के लिये नया आशा का सन्देश है।
वास्तव में यह मार्क्सवादी फिर भी वही पुरानी राजनीति का एक नया रूप है।
डिसानायके ने जो बदलाव लाने की बात की है, वह गरीबों के दिल में आशा जगा देता है 😊।
सच कहूँ तो डिसानायके का वैरसेट विल्ली अर्थव्यवस्था में काफी बदलाव कर सकते है। लेकिन उनका मार्क्सवादी ऐडवोकेसी कभी कुल वारी सहते नहीं रहे। हम देखेंगे कैसे वो बँडवेज़ी का सामना करते है। भविष्य में बहुत सारे चुनौती उनका इंतज़ार कर रही है। अंत में राजनीति में जटिलता कभी भी आसान नहीं होती।
डिसानायके की जीत वास्तव में एक बड़ा आश्चर्य है। यह संकेत देता है कि जनता अब पारम्परिक राजुसभाओं से थक चुकी है। नई सरकार का एजेंडा बड़ा ही अभिव्यक्तिपूर्ण लग रहा है। उन्होंने गरीबी उन्मूलन के लिए कई योजनाएं बताई हैं। इन योजनाओं में ग्रामीण विकास पर विशेष जोर दिया गया है। साथ ही उन्होंने औद्योगिक क्रांति को तेज करने की बात कही। रोजगार सृजन के लिये विदेश में नौकरी करने वालों को भी लगन बनाए रखने को कहा। यह सब सुनकर आम लोग उम्मीदों से भर गये। परंतु इतिहास ने हमें सिखाया है कि वादे अक्सर टूटते हैं। हमें यह देखना होगा कि वे अपने वादों पर कितनी डटे रहते हैं। आर्थिक सुधारों में पारदर्शिता बहुत महत्वपूर्ण होती है। डिसानायके ने इस बात पर भरपूर ज़ोर दे रखा है। अगर वे सच में पारदर्शी रहेंगे तो निवेशकों को भी आकर्षित करेंगे। लेकिन विरोधी दलों का कहना है कि उनकी नीति में कुछ अंधेरे पहलू रह सकते हैं। कुल मिलाकर यह एक नया अध्याय है जिसे सबको मिलकर लिखना होगा।
आपकी बात में कुछ सच्चाई है परंतु बहुत अधिक आशावाद भी दिख रहा है।
बिलकुल नया दौर है 😎
यदि आप डिसानायके के वादा को देख रहे हैं तो उनका आर्थिक नीतियों का विवरण पढ़ना फायदेमंद रहेगा। ऐसा करने से आप बेहतर समझ पाएंगे कि कौन सी योजना व्यावहारिक है।
आपकी भावना समझता हूँ लेकिन यह मार्ग सिर्फ़ आशा से नहीं चल सकता 😊 हमें ठोस डेटा चाहिए।
शायद डिसानायके के पीछे कोई विदेशी शक्ति है जो इस बदलाव को अपने लाभ के लिये चला रही है। यह सब सिर्फ़ सतह पर नहीं दिखता।
ऐसा नहीं हो सकता, मैं आशा करती हूँ सब ठीक रहेगा।
हम सब को मिलकर इस नई दिशा को समझना चाहिए और साथ मिलकर आगे बढ़ना चाहिए।
आपकी बात में शांति का भाव है परंतु वास्तविकता यह है कि नई सरकार अक्सर अपने वादों को पूरे नहीं करती। इतिहास में कई बार देखा गया है कि उछाल के बाद निराशा आती है। डिसानायके का मार्क्सवादी स्वरुप बहुत ही आकर्षक लग सकता है, लेकिन उसके पीछे की नीति की गहराई का मूल्यांकन जरूरी है। अगर वे वास्तव में गरीबों के हित में काम करते हैं तो उनके कदमों को जाँचने की जरूरत होगी। अन्यथा, यह सिर्फ़ एक और प्रदर्शन होगा। हमें सतर्क रहना चाहिए और हर कदम पर सवाल उठाना चाहिए।
वास्तव में आपका नजरिया बहुत ही सीमित है राजनीति में कई पहलू होते हैं जिन्हें आप नज़रअंदाज़ कर रहे हैं।