भारत के योगेश काथुनिया ने पैरालंपिक खेलों में अपने शानदार प्रदर्शन से देश का मान बढ़ाया है। 27 वर्षीय पैरा-एथलीट ने पेरिस 2024 पैरालंपिक में पुरुषों की डिस्कस थ्रो F-56 इवेंट में अपना दूसरा लगातार रजत पदक जीता। उन्होंने अपने पहले ही प्रयास में 42.22 मीटर की दूरी तय करके रजत पदक अपने नाम कर लिया। यह प्रदर्शन उनके टोkyो 2020 पैरालंपिक के प्रदर्शन से मेल खाता है, जहां उन्होंने 44.38 मीटर की दूरी तय करके रजत पदक जीता था।
ब्राजील के क्लॉडिनी बटिस्ता डॉस सैंटोस ने इस बार के पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने अपने पांचवें प्रयास में 46.86 मीटर की दूरी तय करके नया पैरालंपिक रिकॉर्ड स्थापित किया। ग्रीस के कोन्स्टांटिनोस त्ज़ूनिस ने 41.32 मीटर की दूरी के साथ कांस्य पदक अपने नाम किया।
F-56 वर्गीकरण उन एथलीटों के लिए है जिनके अंग में कमी, पैर की लंबाई में अंतर, मांसपेशियों में शक्ति की कमी, और आंदोलन की सीमा में कमी होती है। योगेश काथुनिया का यात्रा बेहद प्रेरणादायक रही है। 9 साल की उम्र में उन्हें गुइलैन-बैरे सिंड्रोम हो गया था, जिसमें शरीर की मांसपेशियों की कार्य क्षमता प्रभावित हो जाती है। इस चुनौतीपूर्ण समय में उनकी मां मीना देवी ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने फिजियोथेरेपी सीखी और अपने बेटे की देखभाल की। उनके निरंतर प्रोत्साहन और समर्थन की बदौलत योगेश ने कभी हार नहीं मानी।
योगेश का शैक्षणिक जीवन भी उल्लेखनीय रहा है। उन्होंने दिल्ली के किरोरीमल कॉलेज से वाणिज्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की है। तीन बार वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में पदक जीत चुके योगेश ने एक अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी पहचान बनाई है। पेरिस 2024 पैरालंपिक में जीता हुआ यह रजत पदक भारत का इस पैरालंपिक का आठवां और एथलेटिक्स में चौथा पदक है।
योगेश के अलावा अन्य भारतीय खिलाड़ियों ने भी पेरिस 2024 पैरालंपिक में शानदार प्रदर्शन किया। निशाद कुमार ने पुरुषों की हाई जंप T47 इवेंट में रजत पदक जीता। प्रीथी पॉल ने 100 मीटर और 200 मीटर T35 क्लास इवेंट में कांस्य पदक जीता। इसके अलावा पैरा शूटिंग में भी भारतीय खिलाड़ियों ने कई पदक जीते।
ब्राजील के 45 वर्षीय क्लॉडिनी बटिस्ता डॉस सैंटोस ने पैरालंपिक रिकॉर्ड तोड़कर स्वर्ण पदक जीता। वह तीन बार वर्ल्ड चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीत चुके हैं। टोक्यो पैरालंपिक में उन्ही का 45.59 मीटर का रिकॉर्ड अब नया पैरालंपिक रिकॉर्ड बन गया है।
स्लोवाकिया के दुसान लाकज़्को ने सर्वश्रेष्ठ प्रयास में 41.20 मीटर की दूरी तय की और चौथे स्थान पर रहे।
योगेश काथुनिया का प्रदर्शन न केवल प्रेरणादायक है बल्कि आने वाले वेहिकल एंड पैरालंपिक खिलाड़ियों के लिए भी एक मार्गदर्शक हैं। उनकी संघर्ष गाथा और उत्कृष्टता की यह यात्रा हमें सिखाती है कि कठिनाइयों के बावजूद दृढ़ संकल्प और मेहनत से किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। भारत जैसी विशाल आबादी के देश में ऐसे खिलाड़ी सामाजिक और मानसिक दोनों ही दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं।
योगेश के इस रजत पदक ने ये साबित कर दिया है कि भारत में पैरालंपिक खेलों का भविष्य उज्ज्वल है और देश के पैरा खिलाड़ियों में विश्व स्तर पर मुकाबला करने की क्षमता है। आने वाले समय में योगेश काथुनिया और उनके जैसे अन्य खिलाड़ियों से और भी बेहतरीन प्रदर्शन की उम्मीदें हैं।
इस आशा के साथ कि योगेश की यात्रा हमारे युवाओं को प्रेरित करेगी और देश को और भी गौरवान्वित करेगी, हम उनकी आगे की सफलता की कामना करते हैं।
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