फारूक अब्दुल्ला के बयान से फिर गरमाया भारत-पाक रिश्तों और कश्मीर आतंकवाद का मुद्दा

अगस्त 6, 2025 14 टिप्पणि Priyadharshini Ananthakumar

फारूक अब्दुल्ला का बयान: कश्मीर में अमन-चैन पर फिर उठे सवाल

नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला के हालिया बयान ने कश्मीर घाटी में शांति को लेकर बहस छेड़ दी है। शोपियां में मीडिया से बात करते हुए उन्होंने साफ कहा, "आतंकवाद तब तक खत्म नहीं होगा जब तक भारत और पाकिस्तान के संबंध बेहतर नहीं हो जाते।" ये कहना जितना सीधा है, उतना ही विवादित भी। अपने बयान में उन्होंने कुलगाम जिले में चल रहे मुठभेड़ का हवाला दिया और केंद्र सरकार की 'शांति' की बातों को सिरे से खारिज कर दिया।

फारूक अब्दुल्ला ने माना कि सीमापार तनाव और घाटी में हो रही आतंकी घटनाओं के बीच गहरा रिश्ता है। उनका कहना था कि पाकिस्तान से बेहतर संबंध ही जम्मू कश्मीर में स्थायी अमन ला सकते हैं। बयान देते वक्त उन्होंने सटीक शब्दों में कहा, “जब तक दोनों देश साथ नहीं बैठते और मसले का हल नहीं निकालते, आतंकवाद खत्म नहीं होगा—चाहे कितनी भी सख्त कार्रवाई क्यों न हो।”

राजनीतिक हलकों में मचा बवाल, बीजेपी ने जमकर आलोचना की

राजनीतिक हलकों में मचा बवाल, बीजेपी ने जमकर आलोचना की

ये बयान ऐसे समय आया है जब केंद्र सरकार कश्मीर में 'सामान्य स्थिति' की जमकर चर्चा कर रही है। बीजेपी ने फारूक अब्दुल्ला पर जमकर हमला बोला। पार्टी नेताओं का कहना है कि इस तरह की बातें देश की सुरक्षा व्यवस्था को नुकसान पहुंचाती हैं और आतंकियों के हौसले बढ़ाती हैं। बीजेपी प्रवक्ताओं ने आरोप लगाया कि अब्दुल्ला का बयान भारत सरकार के शांति प्रयासों के विपरीत है और इससे सिर्फ पाकिस्तान को फायदा होगा।

कश्मीर में आतंकवाद का मुद्दा बरसों पुराना है। एक ओर सुरक्षा बल लगातार ऑपरेशन चला रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक दलों के बयान कभी-कभी सरकार की रणनीति पर सवाल खड़े कर देते हैं। खासतौर से जब बात पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देश से रिश्तों की आती है, तो मसला और उलझ जाता है।

फारूक अब्दुल्ला के हालिया बयान से घाटी के आम लोगों के बीच डर और असुरक्षा की भावनाएं और गहरी हो गई हैं। कई लोग यह समझ नहीं पा रहे कि हालात सुधर रहे हैं या राजनीति फिर से किसी नए खेल में है। बीते कुछ हफ्तों में घाटी में सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ी है, और मुठभेड़ की घटनाएं भी सुर्खियों में आई हैं। इसके बावजूद विपक्ष इस बात पर सवाल उठा रहा है कि क्या असल में हालात पहले से बेहतर हैं?

जम्मू-कश्मीर में आतंक की समस्या का हल निकलेगा या नहीं, यह भारत-पाकिस्तान की कूटनीति और दोनों देशों के नेताओं की इच्छाशक्ति पर भी निर्भर करता है। फिलहाल दोनों मुल्कों के बीच तनाव कम होता नजर नहीं आ रहा और ऐसे में फारूक अब्दुल्ला के बोल फिर से सियासी तापमान बढ़ा रहे हैं।

14 जवाब

Narayan TT
Narayan TT अगस्त 12, 2025 AT 15:00

फारूक की बात तो बिल्कुल बकवास है, भारत के लिये सुरक्षा का सवाल नहीं समझता।

SONALI RAGHBOTRA
SONALI RAGHBOTRA अगस्त 19, 2025 AT 13:40

फारूक अब्दुल्ला का बयान कश्मीर में शांति की जटिलताएं उजागर करता है।
सबसे पहले, सीमा किनारे की तनावपूर्ण स्थितियां सीधे तौर पर स्थानीय संघर्ष को मसकती हैं।
भारत‑पाकिस्तान के रिश्तों में सुधार से ही स्थायी समाधान की संभावनाएं बढ़ती हैं।
हालांकि, यह कहना कि केवल दो पड़ोसी देशों की सगाई से आतंक समाप्त हो जाएगा, थोड़ा सरलीकरण भी है।
देश के अंदर की सामाजिक और आर्थिक असमानताएं भी जघन्य विद्रोह के बीज बोती हैं।
जम्मू‑कश्मीर में रोजगार की कमी, शिक्षा की कमी, और प्रतिबंधित आवाज़ें इस विस्फोट को पोषित करती हैं।
सुरक्षा बलों की सख़्त कार्रवाई केवल लक्षणी राहत देती है, मूल कारण नहीं।
राजनीतिक वर्गों को अब अधिक समावेशी नीतियों की दिशा में सोचना चाहिए।
पाकिस्तान के साथ संवाद की पहल आवश्यक है, लेकिन इसे पारदर्शी ढंग से किया जाना चाहिए।
इसी बीच, स्थानीय नेताओं को भी अपने शब्दों को जिम्मेदारी से चुनना चाहिए।
अति उत्तेजित वक्तव्य अक्सर जनता में भय और अराजकता का माहौल बनाते हैं।
फारूक के शब्द कुछ लोगों को आशा दिखाते हैं, पर कई को निराशा भी।
वास्तविक शांति का रास्ता बहु‑मुखी है-सुरक्षा, विकास, और संवाद का संतुलन।
हमें यह भी समझना होगा कि अंतर्राष्ट्रीय दबाव और घरेलू राजनीति की टकराव को कैसे संभालें।
सच्ची स्थिरता तभी आएगी जब दोनों देशों के जनसाधारण को भी शांति प्रक्रिया में भागीदारी मिले।
इसलिए, संवाद, विकास, और स्थानीय प्रतिनिधित्व को साथ लेकर ही कश्मीर में स्थायी अमन संभव है।

sourabh kumar
sourabh kumar अगस्त 26, 2025 AT 12:20

भाई साहब, मैं मानता हूँ कि दोनों देशों की बात‑चित ज़रूरी है, लेकिन एक तरफा दावें से काम नहीं चलेगा। कश्मीर के लोगों को भी अपनी ज़िंदगी जीने का हक़ चाहिए। हमें दो‑तीन कदम आगे बढ़ना चाहिए, जैसे शिक्षा में निवेश और रोजगार के अवसर बनाना।

khajan singh
khajan singh अगस्त 27, 2025 AT 16:06

बिलकुल सही कहा 😎, पर असली इम्पैक्ट तभी आएगा जब ग्राउंड‑लेवल पर काम हो।

Dharmendra Pal
Dharmendra Pal सितंबर 3, 2025 AT 14:46

फारूक के बयान को देख कर लगता है कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का निखारा जरूरी है। भारत‑पाकिस्तान के रिश्ते सुधारने से सुरक्षा मामलों में कुछ राहत मिल सकती है।

Balaji Venkatraman
Balaji Venkatraman सितंबर 10, 2025 AT 13:26

देश की सुरक्षा के लिये हमें कोई समझौता नहीं करना चाहिए।

Tushar Kumbhare
Tushar Kumbhare सितंबर 17, 2025 AT 12:06

चलो, मिलकर कोशिश करते हैं ✨! अगर दोनों देश बैठेंगे, तो कश्मीर में शांति की राह आसान होगी।

Arvind Singh
Arvind Singh सितंबर 24, 2025 AT 10:46

ओह, फिर से वही पुराना नारा कि अगर पड़ोसी को इम्प्रूव कर दोगे तो सब ठीक हो जाएगा। बहुत ही गहरा विश्लेषण है।

Vidyut Bhasin
Vidyut Bhasin अक्तूबर 1, 2025 AT 09:26

कभी-कभी तर्कसंगत सोच को छोड़कर बस ‘शांत रहो’ कहना ही सबसे बड़ी बुद्धिमानी लगती है।

nihal bagwan
nihal bagwan अक्तूबर 8, 2025 AT 08:06

हिंदुस्तान की सीमाओं के सम्मान के बिना कोई शांति नहीं आ सकती, चाहे कोई भी बयान दे।

Arjun Sharma
Arjun Sharma अक्तूबर 15, 2025 AT 06:46

भाई लोग, इस मुद्दे पे मिलके बात करले, बकवास नहीं।

Sanjit Mondal
Sanjit Mondal अक्तूबर 16, 2025 AT 10:33

सही कहा भइया, मिलजुलके काम करना ही सबसे बेस्ट सॉल्यूशन है।

Ajit Navraj Hans
Ajit Navraj Hans अक्तूबर 23, 2025 AT 09:13

सच बताऊँ तो इस तरह के बयान से बल्कि गंदा माहौल बनता है, वास्तव में कौन बात कर रहा है यहाँ?

arjun jowo
arjun jowo अक्तूबर 30, 2025 AT 07:53

क्या हमें यह समझना चाहिए कि कश्मीर की समस्याएँ केवल दो देशों के बीच नहीं, बल्कि स्थानीय जनसंख्या के अधिकारों से भी जुड़ी हैं?

एक टिप्पणी लिखें