जब आप किसी भी राष्ट्रीय कार्यक्रम में देखते हैं तो सबसे पहले आँखों पर टिकता है वो तीन‑रंग का झंडा – केसरिया, सफ़ेद और हरा। ये सिर्फ रंग नहीं, बल्कि देश की पहचान हैं। इस पेज पर हम सरल भाषा में बताएँगे कि ध्वज कैसे बना, इसका क्या मतलब है और इसे रोज़मर्रा में सही ढंग से कैसे दिखाया जाता है।
भारतीय झंडे की कहानी 1906‑1910 के बीच शुरू होती है जब महात्मा गांधी ने साबरमती आश्रम में सफ़ेद कपड़े पर चक्र लगा कर एक प्रोटोटाइप बनाया। बाद में 1921 में पिंगली कांग्रेस ने तीन रंगों वाला ध्वज अपनाया, लेकिन उस समय चक्र नहीं था। स्वतंत्रता के करीब 1947‑48 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने आज का आधिकारिक डिज़ाइन तैयार किया – केसरिया (साहस), सफ़ेद (शांति) और हरा (समृद्धि) साथ ही 24‑स्पोक वाला अशोक चक्र।
जब भारत ने 15 अगस्त को आजादी मनाई, तब इस झंडे को आधिकारिक तौर पर राष्ट्र का प्रतीक बना दिया गया। तभी से यह हर स्कूल, सरकारी इमारत और सार्वजनिक स्थल पर फहराया जाता है।
झंडा लटकाते समय कुछ आसान नियम होते हैं जिन्हें अगर आप याद रखें तो कोई गलती नहीं होगी:
अगर आप घर में झंडा लटकाते हैं तो एक छोटी सी टोकरी या धागे की मदद से इसे आसानी से बदल सकते हैं। स्कूलों और ऑफिसों में अक्सर ध्वज को सुबह 9 बजे उठाया जाता है, दोपहर के खाने के बाद फिर से गिरा दिया जाता है – यह परम्परा भी बहुत सरल है।
ध्यान रखें कि ध्वज को किसी विज्ञापन या व्यावसायिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। अगर आप कोई कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं तो झंडे को सम्मानपूर्वक फहराएँ और उसके नीचे राष्ट्रीय गीत ‘जन गण मन’ गाने का प्रचलन रखें।
आखिर में यही कहा जा सकता है – भारतीय ध्वज सिर्फ एक कपड़े का टुकड़ा नहीं, यह हमारा गर्व और जिम्मेदारी दोनों दर्शाता है। जब भी आप इसे देखेंगे तो याद रखिए कि इसमें जुड़ी कहानियां, संघर्ष और आशा की झलकें हैं। सही इस्तेमाल से हम इस प्रतीक को और भी मजबूत बनाते हैं।
पेरिस 2024 ओलंपिक के समापन समारोह का आयोजन Stade de France में 11 अगस्त, रविवार को 12:30 AM को हुआ। इस समारोह में H.E.R., Billie Eilish, और Snoop Dogg जैसे नामचीन कलाकारों ने प्रस्तुति दी। हॉलीवुड स्टार टॉम क्रूज ने भी एक खास स्टंट का प्रदर्शन किया। भारतीय ध्वजवाहक थे पीआर श्रीजेश और मनु भाकर।
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