आपने शायद कई बार समाचारों में ब्रह्मपुत्र बाँध का नाम सुना होगा, लेकिन इसके असली मतलब और असर को समझ पाना मुश्किल हो सकता है। यहाँ हम सरल भाषा में बता रहे हैं कि इस बड़े प्रोजेक्ट से हमें क्या‑क्या फ़ायदा मिल रहा है और किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
सबसे पहला सवाल अक्सर यही होता है: "इतना बड़ा बाँध क्यों बनाते हैं?" जवाब दो भागों में देता हूँ – बिजली और सुरक्षा। बांध के पीछे मुख्य योजना जलविद्युत शक्ति पैदा करना है। अगर पूरा प्रोजेक्ट चल पाता है तो लगभग 12,000 MW की क्षमता मिल सकती है, जो लाखों घरों को सस्ती बिजली दे सकता है। दूसरा बड़ा फ़ायदा बाढ़ नियंत्रण का है। ब्रह्मपुत्र नदी के तीव्र जल बहाव से अक्सर आसपास के क्षेत्रों में बाढ़ आती रहती है; बाँध पानी को नियंत्रित करके इस जोखिम को काफी हद तक घटा देता है। साथ ही, सिंचाई और पेयजल की स्थिर आपूर्ति भी बनती है, जिससे किसानों और शहरों दोनों को फायदा होता है।
पिछले साल कुछ बड़े अपडेट हुए। सबसे पहला यह कि भारत‑चीन बीच जल समझौता हुआ, जिसमें ब्रह्मपुत्र बाँध के संचालन के लिए एक साझा डेटा एक्सचेंज प्लेटफ़ॉर्म बनाना शामिल है। इससे दोनों देशों को नदी की जलस्तर और बाढ़ की भविष्यवाणी में मदद मिलेगी। दूसरा अपडेट यह है कि प्रोजेक्ट का फेज‑2 अब मंजूर हो गया, जिसका मतलब है अतिरिक्त टर्बाइन लगाना और स्टोरेज क्षमता बढ़ाना।
पर चुनौतियां भी कम नहीं हैं। पर्यावरणीय समूहों ने कहा है कि बाँध बनते समय कई स्थानीय जीव-जंतु और बायोडाइवर्सिटी खतरे में पड़ सकती है। इसलिए सरकार को इको‑फ़्लो (नदी के प्राकृतिक प्रवाह) बनाए रखने की योजना पेश करनी होगी, जिससे मछलियों का प्रजनन बाधित न हो। दूसरा बड़ा मुद्दा भूमि अधिग्रहण है; कई गाँवों को बाढ़ क्षेत्र में बदलना पड़ेगा और लोगों को पुनर्वास चाहिए। इस पर स्थानीय प्रशासन ने रीसेट प्लान तैयार किया है, लेकिन अभी भी अड़चनें हैं।
एक और बात जो अक्सर छूट जाती है वह है वित्तीय पहलू। प्रोजेक्ट की लागत अब तक 15,000 करोड़ रुपये के आसपास अनुमानित है, जिसमें कुछ हिस्से विदेशी निवेशकों से आएंगे। अगर सही समय पर फंड नहीं मिला तो पूरे टाइमलाइन में देरी हो सकती है। सरकार ने इसे रोकने के लिए सार्वजनिक‑निजी साझेदारी (PPP) मॉडल अपनाया है, जिससे प्राइवेट सेक्टर भी भाग ले सके।
तो अब सवाल उठता है – क्या ये सब मिलकर बाँध को सफल बनाएगा? मेरे हिसाब से हाँ, अगर तीन चीज़ें सही रहती हैं: पर्यावरण संरक्षण के लिए ठोस कदम, स्थानीय लोगों का उचित पुनर्वास और फंडिंग की निरंतर उपलब्धता। इन पहलुओं पर ध्यान देने से न केवल बिजली की समस्या हल होगी बल्कि बाढ़‑प्रभावित क्षेत्रों में जीवन स्तर भी सुधरेगा।
अंत में यह कहना चाहूँगा कि ब्रह्मपुत्र बाँध सिर्फ एक निर्माण प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि भारत के जल-ऊर्जा नीति का बड़ा हिस्सा है। अगर हम इसे सही दिशा में ले जाएँ तो यह न केवल ऊर्जा की खपत कम करेगा, बल्कि जल सुरक्षा और कृषि उत्पादन भी बढ़ाएगा। इस पर नजर रखिए, क्योंकि आने वाले महीनों में नई खबरें और अपडेट्स लगातार आएंगे।
चीनी विदेश मंत्री वांग यी के 18-19 अगस्त 2025 के भारत दौरे में सीमा, आतंकवाद, ब्रह्मपुत्र और ताइवान पर कड़ी और स्पष्ट बातचीत हुई। भारत ने सीमा पर शांति को संबंध सामान्य करने की शर्त बताया, आतंकवाद पर सख्ती की मांग की और ब्रह्मपुत्र पर पारदर्शिता चाही। चीन ने आतंकवाद पर प्राथमिकता से काम करने और कुछ व्यापार बाधाओं पर आश्वासन दिए।
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