जब बात आती है टाटा स्टील लिमिटेड, भारत की सबसे बड़ी और दुनिया की टॉप 10 स्टील कंपनियों में शामिल एक औद्योगिक विशालकाय की, तो ये सिर्फ एक कंपनी नहीं, बल्कि देश के निर्माण, बुनियादी ढांचे और उद्योग का दिल है। ये कंपनी अपने राउरकेला, जमशेदपुर और भिलाई के स्टील प्लांट्स से ही नहीं, बल्कि देश के हर कोने में बन रहे बुनियादी ढांचे को सपोर्ट करती है—रेलवे ट्रैक, पुल, इमारतें, गाड़ियाँ, घर, बिजली के टावर तक। ये वो चीज़ है जिसके बिना आधुनिक भारत नहीं चल सकता।
टाटा स्टील लिमिटेड सिर्फ स्टील बेचती नहीं, बल्कि इसके आसपास एक पूरा आर्थिक पारिस्थितिक तंत्र बनाती है। इसकी अपनी फाइनेंशियल हब, टाटा कैपिटल, टाटा समूह की फाइनेंस और इन्वेस्टमेंट विंग, जिसने 2023 में 15,511 करोड़ रुपये का सबसे बड़ा IPO लॉन्च किया, ने इसके विस्तार को और तेज कर दिया। इस IPO में LIC जैसे बड़े निवेशकों ने भरोसा दिखाया, जिससे टाटा स्टील के लिए नई पूंजी का बहाव शुरू हुआ। ये निवेश सिर्फ एक शेयर बाजार की खबर नहीं, बल्कि देश के औद्योगिक भविष्य का संकेत है। इसके नेतृत्व में राजीव सबहारवाल, टाटा कैपिटल के CEO और टाटा समूह के एक प्रमुख आर्किटेक्ट जैसे लोग इस रणनीति को आगे बढ़ा रहे हैं।
टाटा समूह के अंदर टाटा स्टील की जगह अलग है। ये एक ऐसी कंपनी है जो न केवल अपने उत्पादों से लाभ कमाती है, बल्कि अपने आप को एक स्थायी बुनियादी ढांचे के रूप में स्थापित कर चुकी है। जब भारत में रेलवे के लिए नए रेलगाड़ी के डिज़ाइन बनते हैं, या एक नया हाईवे बनाया जाता है, तो उसकी स्टील की ज़रूरत टाटा स्टील से ही मिलती है। ये बात किसी बड़े कॉर्पोरेट के बारे में नहीं, बल्कि देश के विकास के दिल के बारे में है।
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टाटा स्टील का शेयर ₹168 पर गिरा, जबकि कंपनी ने यूरोप में LAG Velsen B.V. के लिए ₹1,160 करोड़ का अधिग्रहण घोषित किया और सितंबर 2025 के तिमाही में ₹4,06,013 लाख का लाभ कमाया।
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