शनिवार, 26 अक्टूबर 2024 को शुरू हुआ लोक आस्था का सबसे भावुक महापर्व छठ। रविवार को भोजपुरी सिनेमा के दो बड़े चेहरे — काजल राघवानी और अरविंद अकेला कल्लू — ने अपने फैंस को शुभकामनाएं देते हुए ऐसी तस्वीरें साझा कीं, जो दिल छू गईं। काजल ने अपने इंस्टाग्राम पर पारंपरिक लहंगा पहने, मंदिर के सामने बैठी हुई एक तस्वीर पोस्ट की, जहां उनके चेहरे पर भक्ति और बचपन की यादों का मिश्रण था। "जय छठी मइयां, सबकी मनोकामनाएं पूर्ण हों," लिखा उन्होंने। वहीं, कल्लू ने अपनी मां को चूल्हे पर खीर बनाते हुए फोटो शेयर किया — एक ऐसा पल जो सिर्फ एक तस्वीर नहीं, बल्कि एक परिवार की आत्मा था।
काजल राघवानी ने इस पर्व को सिर्फ एक धार्मिक अवसर नहीं, बल्कि एक व्यक्तिगत यादों का सफर बताया। उनका छठ स्पेशल गीत "छठी माई के पावन परबिया", जिसे उन्होंने यूट्यूब पर रिलीज़ किया था, अब तक 23,000 से ज्यादा बार देखा जा चुका है। गीत में भोजपुरी लोक संगीत की धुन और मां के प्रति भक्ति का संगम है — एक ऐसा मिश्रण जो गांवों से शहरों तक लोगों को जोड़ रहा है। इससे पहले, उनकी फिल्म "बड़की दीदी-2" का वर्ल्ड टेलीविजन प्रीमियर आईवीवाई एंटरटेनमेंट के बैनर तले हुआ था, जिसने उनकी लोकप्रियता को और बढ़ाया।
अरविंद अकेला कल्लू की तस्वीरें तो दिल को छू गईं। उनकी मां का हाथ जो खीर में चम्मच घुमा रहा था, वह दृश्य ने न सिर्फ एक भोजपुरी परिवार की छठ की तैयारी दिखाई, बल्कि भारत के लाखों घरों की वही छठ की याद ताजा कर दी। "मां के हाथों के प्रसाद की खुशबू और छठी मइया की कृपा, दोनों ही जीवन का सबसे बड़ा आशीर्वाद हैं," उन्होंने लिखा। यह बयान उनके गीत "बाझिन तिवई" (2022) के भाव को जीवंत करता है — एक गीत जिसका संगीत रावशन सिंह ने दिया था, बोल पंकज बसुधरी ने लिखे थे, और वीडियो रवि पांडित ने डायरेक्ट किया था। अब उनका नया गाना "रात वाला दरद" जल्द ही रिलीज़ होने वाला है, जिसके लिए फैंस बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
काजल और कल्लू की तस्वीरें वायरल होने का एक और कारण था — उनकी आने वाली फिल्म "प्रेम विवाह"। दोनों ने चंद्रिका देवी मंदिर में एक साथ तस्वीरें शेयर कीं, जहां वे पति-पत्नी के रूप में दिख रहे थे। कैप्शन में लिखा था: "प्रेम विवाह के बाद मिल गया माता चंद्रिका देवी जी का आशीर्वाद।" इस तस्वीर को देखकर कई फैंस ने सोचा कि शायद ये दोनों असल में शादी कर चुके हैं। लेकिन यह सिर्फ फिल्म का प्रमोशनल गेटअप था — एक बुद्धिमानी भरा ट्रेंड।
काजल का पिछला रिश्ता भोजपुरी स्टार खेसारी लाल यादव के साथ रहा था, जिसके टूटने से फैंस बहुत दुखी हुए थे। इसलिए, अब जब वह कल्लू के साथ एक धार्मिक स्थान पर पति-पत्नी के रूप में दिख रही हैं, तो यह भावनात्मक असर दोगुना हो जाता है। फिल्म के प्रचार में यह तकनीक अच्छी लगी — भावनाओं को बेचना अब बिजनेस बन गया है।
काजल और कल्लू के अलावा, भोजपुरी सिनेमा के दूसरे बड़े नाम भी इस बार छठ पर आए। बसीर अली, जो बिग बॉस 19 के फेम हैं, ने लिखा: "प्रार्थना, आभार और सूर्य की रोशनी के साथ छठ की शुभकामनाएं।" वहीं, मनोज तिवारी और पवन सिंह ने अपने-अपने छठ गीत रिलीज़ किए — जिन्हें यूट्यूब पर रिलीज़ होते ही लाखों व्यूज़ मिले। पवन सिंह के गीत पर फैंस ने रील्स बनाईं, जबकि मनोज तिवारी ने अपने वीडियो में लिखा: "सूर्य देव और छठी मइया की कृपा से सबके जीवन में उजाला बना रहे।"
अक्षरा सिंह ने तो अपनी फिल्म की शूटिंग छोड़कर परिवार के साथ छठ मनाई। उनका गीत "छठी मैया" भी वायरल हुआ। यह सब बताता है कि छठ अब सिर्फ एक धार्मिक त्योहार नहीं — यह भोजपुरी सांस्कृतिक पहचान का एक अहम हिस्सा बन गया है। गाने, तस्वीरें, वीडियोज़ — सब कुछ इस त्योहार को नई ऊंचाइयों पर ले जा रहा है।
छठ का असली रूप तो बहुत सादा है — सूर्य देव को नमन, पानी में दीप जलाना, बिना नमक का भोजन, और बूढ़े लोगों को आशीर्वाद देना। लेकिन आज, इस त्योहार को एक अलग तरह से देखा जा रहा है। सिनेमा और सोशल मीडिया ने इसे एक जनसंचार का औजार बना दिया है। जब काजल और कल्लू अपनी मां की तस्वीर शेयर करते हैं, तो वे सिर्फ छठ नहीं, बल्कि एक परिवार की गहराई भी दिखा रहे हैं। जब अक्षरा शूटिंग छोड़कर घर आती हैं, तो वे एक स्टार की जगह एक बेटी के रूप में दिख रही हैं।
यही बात है जो इस छठ को अलग बनाती है — यह न केवल धर्म का त्योहार है, बल्कि एक भावनात्मक रिकॉर्डिंग है। जिस तरह से भोजपुरी संस्कृति अपने गीतों, तस्वीरों और लोक कथाओं के जरिए अपनी पहचान बना रही है, उसी तरह छठ भी अब एक सांस्कृतिक ब्रांड बन गया है।
नहीं, वे वास्तव में शादीशुदा नहीं हैं। उनकी तस्वीरें उनकी आने वाली फिल्म 'प्रेम विवाह' के प्रचार के लिए ली गई थीं। इन तस्वीरों को देखकर कई फैंस ने गलत धारणा बना ली, लेकिन दोनों कलाकारों ने कभी भी शादी की घोषणा नहीं की है।
भोजपुरी गीत इस त्योहार के साथ गहरे सांस्कृतिक जुड़ाव रखते हैं। ये गीत सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि घरेलू भावनाओं, मां के प्रति भक्ति और ग्रामीण जीवन की यादों को दर्शाते हैं। इसलिए ये गीत यूट्यूब पर लाखों व्यूज़ पा रहे हैं — क्योंकि ये लोगों के दिल की धड़कन को छू रहे हैं।
काजल राघवानी का छठ स्पेशल गीत 'छठी माई के पावन परबिया' यूट्यूब पर 23,000 से अधिक बार देखा जा चुका है। यह संख्या भोजपुरी गीतों के लिए बहुत ऊंची मानी जाती है, खासकर जब इसे एक अकेले कलाकार की ओर से रिलीज़ किया गया हो।
अरविंद अकेला कल्लू के नए गाने का नाम 'रात वाला दरद' है, जो जल्द ही रिलीज़ होने वाला है। इसके अलावा, उन्होंने पिछले कुछ दिनों में 'टिकुलिया' नामक गाना भी रिलीज़ किया है, जो फैंस के बीच अच्छा प्रतिक्रिया ले रहा है।
छठ को भोजपुरी संस्कृति में एक अत्यंत गहरा धार्मिक और पारिवारिक त्योहार माना जाता है। कलाकार अपनी शूटिंग छोड़कर घर आते हैं, क्योंकि यह एक सांस्कृतिक जिम्मेदारी है। अक्षरा सिंह जैसे कलाकारों ने इसे एक नियम बना दिया है — यह उनकी पहचान का हिस्सा बन गया है।
पुराने समय में छठ की तस्वीरें घर के अंदर ही रहती थीं। आज, सोशल मीडिया ने इसे एक जनसंचार का औजार बना दिया है। जब सितारे अपनी मां की तस्वीर शेयर करते हैं, तो वे न केवल अपनी भक्ति दिखाते हैं, बल्कि एक नई पीढ़ी को भी इस त्योहार की महत्ता समझाते हैं।
2 जवाब
बस एक तस्वीर दिखाकर भक्ति का नाटक कर रहे हैं। असली छठ तो गांव में नदी किनारे बैठकर दीप जलाने में है, न कि इंस्टाग्राम पर।
इस तरह के प्रचार के पीछे, एक गहरी सांस्कृतिक वास्तविकता छिपी है: जब आधुनिकता और परंपरा टकराती हैं, तो भावनाएँ ही अकेले सेतु बन जाती हैं। काजल की तस्वीरें, कल्लू की खीर, अक्षरा का घर लौटना - ये सब एक ही जीवन की अलग-अलग धुनें हैं।
हम जिसे 'प्रमोशन' कहते हैं, वह शायद वास्तव में एक नई पीढ़ी के लिए परंपरा का नया अर्थ है।
जब एक बेटी शूटिंग छोड़कर घर आती है, तो वह केवल अपनी माँ के लिए नहीं, बल्कि एक संस्कृति के लिए आती है।
यह अब बिजनेस नहीं, बल्कि भावनात्मक विरासत का संरक्षण है।
हम इसे बेचने का नाम देते हैं, लेकिन दिल जानता है - ये सिर्फ एक ट्रेंड नहीं, एक याद है।
हर चम्मच घुमाता हाथ, हर दीप जलाती आँख, हर गीत जिसमें माँ का नाम है - ये सब एक ही आत्मा की धड़कन हैं।
हम इसे ट्रेंड कहकर बेचते हैं, लेकिन ये वास्तव में एक जीवन का अध्याय है।
जब आप एक अनजान व्यक्ति की तस्वीर देखकर आँखें भर आती हैं, तो यह बताता है कि हम सब कुछ एक ही गांव के बच्चे हैं।
छठ अब एक त्योहार नहीं, बल्कि एक आवाज है - जो शहरों में भी गांव की याद दिलाती है।
इसलिए, जो इसे प्रमोशन कहते हैं, वे शायद उस गहराई को नहीं देख पा रहे, जो इस त्योहार के दिल में बसती है।