प्रसिद्ध मिमिक्री कलाकार श्याम रंगीला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा की थी। लेकिन प्रशासनिक बाधाओं का सामना करते हुए वह अपना नामांकन दाखिल करने में विफल रहे। श्याम रंगीला ने आरोप लगाया कि प्रशासन ने उन्हें नामांकन दाखिल करने से रोका और इस संबंध में उन्होंने चुनाव आयोग से भी शिकायत दर्ज कराई थी।
हालांकि इस असफलता के बावजूद श्याम रंगीला ने अपनी जीत पर भरोसा जताया। उन्होंने कहा कि यह उनके लिए एक जीत है और गंगा मैया ने भी उन्हें गोद लिया है। वाराणसी में सातवें चरण में मतदान होना निर्धारित है।
श्याम रंगीला काफी समय से अपनी मिमिक्री के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नकल उतारने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने पिछले कुछ समय से पीएम मोदी के खिलाफ वाराणसी सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी। इसके लिए उन्होंने कई जनसभाएं भी की थीं और लोगों से समर्थन मांगा था।
श्याम रंगीला ने अपने चुनाव अभियान में कई मुद्दों को उठाया था। उन्होंने वाराणसी में विकास कार्यों की कमी, बेरोजगारी और गरीबी जैसे मुद्दों पर सवाल खड़े किए थे। साथ ही उन्होंने पीएम मोदी पर कई आरोप भी लगाए थे। हालांकि उनका चुनाव अभियान ज्यादा समय तक नहीं चल पाया।
श्याम रंगीला को अपना नामांकन दाखिल करने में कई प्रशासनिक बाधाओं का सामना करना पड़ा। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन ने जानबूझकर उन्हें नामांकन दाखिल करने से रोका। इस संबंध में उन्होंने चुनाव आयोग से भी शिकायत दर्ज कराई थी।
श्याम रंगीला ने कहा कि उनके साथ अन्याय हुआ है और उन्हें जानबूझकर चुनाव लड़ने से रोका गया है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि वह हार नहीं मानेंगे और अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। उन्होंने कहा कि जनता उनके साथ है और वह एक दिन जरूर जीतेंगे।
नामांकन दाखिल न कर पाने के बावजूद श्याम रंगीला ने कहा कि यह उनके लिए एक जीत है। उन्होंने कहा कि गंगा मैया ने भी उन्हें अपनाया है और उनका आशीर्वाद उनके साथ है। श्याम रंगीला ने कहा कि वह अपने संघर्ष को जारी रखेंगे और जनता की सेवा करते रहेंगे।
श्याम रंगीला के समर्थकों ने भी उनका साथ दिया और कहा कि वह एक ईमानदार और निष्ठावान व्यक्ति हैं। उन्होंने कहा कि श्याम रंगीला ने हमेशा गरीबों और वंचितों के हितों की लड़ाई लड़ी है और वह एक दिन जरूर सफल होंगे।
वाराणसी लोकसभा सीट पर सातवें और अंतिम चरण में 19 मई को मतदान होना है। यहां मुख्य मुकाबला पीएम नरेंद्र मोदी और सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के उम्मीदवार शालिनी यादव के बीच है।
वाराणसी में कांग्रेस ने अजय राय को अपना उम्मीदवार बनाया है। हालांकि श्याम रंगीला के नामांकन न कर पाने से चुनावी समीकरण थोड़े बदल गए हैं। पिछली बार 2014 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी ने वाराणसी सीट पर 3.37 लाख वोटों के भारी अंतर से जीत दर्ज की थी।
कुल मिलाकर वाराणसी लोकसभा सीट पर इस बार भी दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल सकता है। हालांकि श्याम रंगीला के नामांकन न कर पाने से पीएम मोदी के लिए चुनौती कम हो गई है। लेकिन सपा-बसपा-रालोद गठबंधन अभी भी उनके लिए कड़ी टक्कर दे सकता है। वहीं कांग्रेस का प्रदर्शन भी इस सीट पर अहम रहेगा।
5 जवाब
वाह, श्याम रंगीला फिर से सर्कस में खो गया, अब चुनाव की सिट पर भी झाँक रहा है।
प्रशासनिक बाधाओं की शिकायत कर के वह खुद को शहीद मान लेता है, जैसे कि यह दुनिया उसके बिना चल ही नहीं सकती।
लेकिन असल में यह वही पुरानी कहानी है जहाँ हर कोई अपने छोटे‑छोटे नायकत्व का भ्रम पैदा करता है।
अगर वह वाकई में जनता की सेवा करना चाहता है तो उस ‘गंगा मैया’ के भरोसे को वोटर लिस्ट में बदल दे।
चुनाव आयोग को शिकायत में लिखते‑लिखते वह शायद अपनी कॉमिक स्क्रिप्ट छिपा रहा है।
भारत में कांग्रेस, सपा‑बसपा या कोई भी बड़ी पार्टी नहीं, बल्कि एक कॉमेडी क्लब है जहाँ वह एक कलाकार बनकर मंच ले रहा है।
सत्य यह है कि लोकतंत्र में मतदाता को मजाकिया पात्रों की नहीं, बल्कि ठोस नीतियों की जरूरत है।
श्याम के जैसे लोग केवल मंच पर हँसी बिखेरते हैं, पर असल में विकास की कोई योजना नहीं बनाते।
“गंगा मैया ने गोद लिया” ऐसी बातें सुनकर तो मैं सोचता हूँ, क्या उन्हें कोई जल निकासी विभाग भी काम पर रख लिया है?
प्रशासनिक रोको‑टोको को वह ‘भेदभरा दुर्व्यवहार’ कहता है, जबकि वही नियम सभी को समान रूप से लागू होते हैं।
यह बात तो स्पष्ट है कि वह खुद को शहीद का दर्जा नहीं दे सकता, जब तक कि उसने वास्तविक भ्रष्टाचार का विरोध न किया हो।
अगर वह सच में परिवर्तन चाहता है, तो उसे अपने कॉस्ट्यूम को उतार कर वास्तविक कार्य‑क्षेत्र में उतरना चाहिए।
जनता को यह समझना चाहिए कि मंचीय नाटक और असली राजनीति में बड़ा अंतर है, और वह अक्सर इस अंतर को नहीं देख पाते।
इसलिए मैं कहता हूँ, श्याम रंगीला का नामांकन न हो पाना सिर्फ एक ‘विकटता’ नहीं, यह एक छोटे‑छोटे बाधा को दूर करने का संकेत है।
अंत में, अगर आप गंगा के जल में भरोसा रखते हैं तो वही जल आपके चुनावी फ़ैसलो में भी साफ़ होना चाहिए।
असल में यह सब एक बड़ी दार्शनिक प्रयोग है, जहाँ उम्मीदवार खुद को उत्पीड़न की भूमिका में ढालते हैं।
अगर लोकतंत्र एक बगीचा है, तो श्याम रंगीला वह नाखुश पत्ता है जो हवा में अपनी शाखा के लिए हँसता है।
मैं मानता हूँ कि प्रशासनिक बाधा सिर्फ एक बौद्धिक द्वंद्व है, जिसे हम सब उदासीनता से देख रहे हैं।
इसलिए उनका अभाव वास्तव में समाज के ‘अधिनायकवाद’ के विरुद्ध एक मौन कृत्य है।
परंतु, यह कृति कितनी भी सराहनीय क्यों न हो, वह फिर भी एक ‘परफॉर्मेंस’ ही रहेगी।
श्याम रंगीला का यह तमाशा राष्ट्रीय हित के प्रति असम्मान को दर्शाता है।
हमें अपने देश की संप्रभुता को ऐसे ‘मनोरंजन’ के लिए जोखिम नहीं उठाना चाहिए।
यदि वह वास्तव में गंगा मैया की शरण में है, तो वह गंगा की शुद्धता को राजनीति के धुंध में नहीं घोला सकता।
इस प्रकार की अयोग्य उम्मीदवारियों को वोटर सूची से हटाना ही राष्ट्रीय सुरक्षा का कर्तव्य है।
कोइ भी डेमोक्रेसी MVP इंटीग्रेटेड कंट्रोल लैरी नहीं चलाता, बस हाईपर-एंगेज्ड पॉलिसी ब्रेन।
सभी को नमस्कार, मैं इस थ्रेड में कुछ तथ्यात्मक जानकारी साझा करना चाहता हूँ। 😊
चुनाव आयोग की वेबसाइट पर देखे तो श्याम रंगीला के नामांकन फॉर्मों के जमा होने की अंतिम तिथि 12 मई थी, जिसे उन्होंने पार नहीं किया।
इस कारण उनका नामांकन नहीं दिख रहा है, और यह प्रक्रिया के नियमों के अनुसार ही है।
यदि कोई नागरिक इस विषय में आगे पूछताछ करना चाहता है तो वे आयोग के हेल्पलाइन 1800‑180‑0010 पर संपर्क कर सकते हैं।
आशा है यह जानकारी आपके प्रश्नों का समाधान करेगी। 🙏