पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में बांग्लादेश में चल रहे हिंसक प्रदर्शनों के बीच वहां के लोगों के प्रति सहानुभूति प्रकट की है। कोलकाता के त्रिणमूल कांग्रेस के शहीद दिवस रैली में उन्होंने कहा कि अगर बांग्लादेश के असहाय लोग पश्चिम बंगाल के दरवाजे पर दस्तक देते हैं तो उनकी सरकार उन्हें शरण देने में संकोच नहीं करेगी। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी संबंधी प्रस्ताव का हवाला देकर अपने बयान को न्यायसंगत ठहराया।
बांग्लादेश में सरकारी नौकरी में आरक्षण को लेकर जारी प्रदर्शन बेकाबू हो चुके हैं। कमीशन के आरक्षण के खिलाफ हो रहे इन प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया है जिस में अब तक 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए सरकार ने राष्ट्रव्यापी कर्फ्यू और इंटरनेट बंद कर दिया है।
भारत सरकार इस मामले को बांग्लादेश का आतंरिक मुद्दा मानते हुए संभल कर प्रतिक्रिया दे रही है। भारतीय मिशन ने बांग्लादेश में फसे 978 भारतीयों को सुरक्षित वापस लाने में मदद की है।
ममता बनर्जी ने अपने बयान में पश्चिम बंगाल के लोगों को अपील की कि वे इस मामले में उत्तेजित न हों और शांति बनाए रखें। इसके साथ ही उन्होंने उन पश्चिम बंगालियों को भरोसा दिलाया जिनके रिश्तेदार बांग्लादेश में फसें हैं।
ममता बनर्जी के इस बयान पर बंगाल भाजपा ने कड़ी आलोचना की है। भाजपा का कहना है कि विदेशी नीति से संबंधित ऐसे किसी भी मुद्दे पर केंद्र सरकार के साथ समन्वय करना चाहिए।
ममता बनर्जी की यह घोषणा ऐसे समय आई है जब बांग्लादेश में हिंसा और अस्थिरता का माहौल है, और इसी के चलते पश्चिम बंगाल की सरकार की यह पहल मानवता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।
10 जवाब
ममता का बयान कूटनीतिक बेजबंदी है।
ममता बनर्जी का यह कदम हाल के इतिहास में एक मानवीय पहल के रूप में याद रखा जाएगा।
बांग्लादेश के असहाय लोगों को शरण देने की उनकी बात सामाजिक दायित्व को दर्शाती है।
अगर भारत के एक राज्य सीमा के पास इस तरह की सहानुभूति दिखाता है तो यह राष्ट्रीय स्तर पर भी सकारात्मक संकेत दे सकता है।
साथ ही यह याद रखना जरूरी है कि शरणार्थी मुद्दे में अंतर्राष्ट्रीय समझौते भी शामिल होते हैं, इसलिए उचित कानूनी पहल चाहिए।
इस पहल से स्थानीय स्तर पर भी संभावित सामाजिक तनाव कम हो सकता है, क्योंकि लोगों को स्पष्ट आश्वासन मिलेगा।
हमें यह भी देखना होगा कि इस कदम से भारतीय प्रवासी बांग्लादेशी समुदाय पर कैसे प्रभाव पड़ेगा।
यदि सही ढंग से लागू किया गया तो यह दोनों देशों के बीच अच्छे रिश्ते को बढ़ावा दे सकता है।
आशा है कि केंद्र सरकार भी इस दिशा में सहयोग देगी, क्योंकि विदेश नीति एक एकल राज्य की पहल नहीं चलती।
साथ ही, शरणार्थियों की सुरक्षा और पुनर्वास के लिए उचित बुनियादी ढांचा तैयार करना अनिवार्य है।
स्थानीय प्रशासन को इस प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखनी चाहिए, जिससे विश्वास बना रहे।
भविष्य में ऐसी स्थिति दोबारा न आए, इसके लिये बांग्लादेश में स्थायी शांति समाधान की भी आवश्यकता है।
यह शांति और विकास की दिशा में एक ठोस कदम हो सकता है, यदि सभी पक्ष मिलकर काम करें।
समाज के विभिन्न वर्गों को इस मुद्दे पर जागरूक करना भी आवश्यक है, ताकि किसी भी तरह का सांप्रदायिक तनाव न उत्पन्न हो।
अंत में, यह कहना सही होगा कि मानवता की बात करने वाले नेताओं को ही आगे बढ़ते देखना चाहिए।
आइए, हम सभी मिलकर इस सकारात्मक कदम को सफल बनायें।
भाई लोग, ममता दीदी की बात समझ में आती है, पर सेटिंग्स को देखते हुए हमें देखना चाहिए कि बांग्लादेश की स्थिति कब तक सुधरती है।
अगर असहाय लोग सच में बंधक बन रहे हैं, तो इस तरह की मदद जरूरी है।
पर साथ में स्थानीय लोगों को भी परेशान नहीं होना चाहिए, तो संतुलन बनाए रखना होगा।
सूचना: ममता के बयान में मानवीय मुद्दे पर प्रकाश डाला गया है।
जैसे कि सिंड्रोम‑ऑफ‑फ़्लक्स (SOF) के आधार पर शरणार्थियों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।
सौजन्य का यह पहल रणनीतिक सोच के साथ जुड़ता है।
👍
शरण देने के नियमों में स्पष्टता होनी चाहिए ताकि किसी भी प्रकार की उलझन न पैदा हो। यह कदम स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी को भी उजागर करता है।
अगर सीमा पर दिल न खोलोगे तो लोगों को क्यूं भरोसा होगा?
वाह! यह पहल बहुत ही एम्मोशनली रिच है 😊 भरोसा है कि सबको मिलजुल कर मदद मिलेगी।
जैसे ही ममता ने शरण का वादा किया, वैसे ही दो-दो साल बाद नया बोर्डर इशू उभरता है, है न? असली समाधान नहीं दिख रहा।
सही कहा, बांग्लादेश की गड़बड़ी हमेशा भारत को बक़ाबू करने का बहाना बनती है, मैं तो ऐसे हर कदम पर ‘फ्लिप’ देखता हूँ।
देश के हित में ही सबको देखना चाहिए, विदेशी मामलों में इस तरह की बेतुकी दया से भारत को नुकसान नहीं होना चाहिए।