जब संजय सिंह, मुख्य अर्थशास्त्री बजाज फाइनसर्व ने 2025 की दीवाली के लिए सोने की कीमतों का अनुमान दिया, तो बाजार के कई पहरेदारों की निगाहें तुरंत जुड़ी। दीपावली 2025भारत के उत्सव‑सीजन में 24K सोना ग्राम में 12,000 रुपये पार कर चुका है, जबकि 10‑ग्राम सोने की कीमतें 1,20,000 रुपये से ऊपर चली गईं। इस ऐतिहासिक उछाल में मूठूट गोल्ड पॉइंट की भूमिका, वैश्विक मुद्रा‑संकट, और महंगाई के दबाव भी अहम हैं।
सितंबर 2025 में सोने की कीमतें लगातार सात सप्ताह बढ़ती रहीं। 25 सितंबर को 1,03,721 रुपये, 24 सितंबर को 1,04,464 रुपये, और 23 सितंबर को 1,03,964 रुपये दर्ज किए गए। इस निरंतर गति से यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं कि 10‑ग्राम सोना जल्द ही 1,25,000 रुपये की दहलीज पार कर सकता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि इस उछाल के पीछे दो मुख्य कारक हैं: अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सुरक्षित‑बंदोबस्त की मांग और भारतीय रुपए की निरंतर depreciate होती ताकत।
बजाज फाइनसर्व ने पूर्वानुमान लगाया है कि दीवाली तक सोने की कीमत 82,000‑85,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के बीच रह सकती है। परंतु रवीना मिश्रा, व्यापार विश्लेषक एमआईएसएफ़ इंडस्ट्रीज लिमिटेड का कहना है, “वर्तमान रुझान दिखाता है कि ये अनुमान बहुत रूढ़िवादी हैं; बाजार की गतिशीलता और मौद्रिक नीति दोनों ही तेज़ी से बदल रहे हैं।”
रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) की मौद्रिक नीति भी इस पर असर डाल रही है। RBI ने 2025 के पहले आधे हिस्से में सूड दर को 6.5% पर स्थिर रखा, जिससे ऋण लेने की लागत बढ़ी और निवेशकों ने सोने को एक सुरक्षित विकल्प माना।
दीपावली के दौरान भारत में सोने की खरीदारी परंपरागत रूप से बढ़ती है। मूठूट गोल्ड पॉइंट के अनुसार, “त्योहारों की रौनक से रीटेलरों को डिस्काउंट कम करने या मेकिंग चार्ज बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ता है, पर सोने की बुनियादी दर अंतरराष्ट्रीय कीमतों से तय होती है।” इस कारण से, दीवाली में भले ही दुकान‑दर‑दुकान पर मूल्य थोड़ा अलग दिखे, लेकिन वैश्विक बेंचमार्क ही प्रमुख चालक है।
सांस्कृतिक दृष्टि से, सोना केवल निवेश नहीं, बल्कि सामाजिक स्थिति और वर‑वधू शुद्धि का प्रतीक है। इसलिए, कीमतें चाहे जितनी भी बढ़ें, लोग फिर भी सोने की खरीदारी को प्राथमिकता देते हैं।
दीवाली के बाद के महीनों में कीमतें 1,13,800‑1,20,400 रुपये के मध्य में स्थिर रह सकती हैं, जैसा कि कई बैंकों ने बताया। लेकिन अगर यू.एस. फेडरल रिजर्व आगे और ब्याज दरें घटाता है, तो डॉलर कमजोर होगा और सोने की कीमतें और ऊपर जा सकती हैं। उसके उलट, यदि वैश्विक अर्थव्यवस्था पुनः स्थिर हो जाती है या तेल की कीमतें गिरती हैं, तो सुरक्षित‑बंदोबस्त की मांग घट सकती है, जिससे कीमतें थोड़ी गिर सकती हैं।
लंबी अवधि में, विभिन्न वित्तीय संस्थानों ने 2026‑2028 तक की भविष्यवाणियों में 87,000‑100,000 रुपये प्रति 10 ग्राम की सीमा बताई है, लेकिन कुछ रिपोर्टें 2026 में ही 1,25,000 रुपये की हद तक पहुँचने की संभावना को भी उजागर करती हैं। “उच्च महंगाई, धीमी आर्थिक वृद्धि, और डॉलर में निरंतर गिरावट, इन सबका सम्मिलन सोने को एक बेजोड़ हेज बनाता है,” रवीना मिश्रा ने कहा।
निवेशकों को चाहिए कि वे अपनी व्यक्तिगत वित्तीय स्थिति, निवेश horizon, और जोखिम सहनशीलता को ध्यान में रख कर निर्णय लें। छोटे‑समय की कीमतों पर अधिक फोकस करने के बजाय दीर्घकालिक सुरक्षा को देखना समझदारी रहेगी।
सभी संकेत मिलाकर कहा जा सकता है कि 1.25 लाख रुपये की दहलीज़ दीवाली 2025 से पहले या उसके आसपास ही पार हो सकती है। यद्यपि यह अनुमान कुछ हद तक अनिश्चित है, लेकिन विश्व‑वित्तीय माहौल, भारतीय मौद्रिक नीति, और दृश्य‑सांस्कृतिक मांग मिलकर इस लक्ष्य को वास्तविकता के करीब ले जा रहे हैं। निवेशकों को चाहिए कि वे सूक्ष्मता से बाजार की खबरें पढ़ें और अपने पोर्टफोलियो को संतुलित रखें।
वैश्विक बाजार में सुरक्षित‑बंदोबस्त की बढ़ती मांग, बढ़ती महंगाई और भारतीय रुपये की कमजोरी ने मिलकर कीमतों को ऊपर धकेला है। साथ ही, दीपावली जैसे त्यौहारों में पारंपरिक खरीदारी की भावना भी कीमतों को समर्थन देती है।
बजाज फाइनसर्व अधिक रूढ़िवादी मॉडल पर भरोसा करता है, जबकि मूठूट गोल्ड पॉइंट बाजार‑सेंटरिक डेटा और रीटेलर प्रतिक्रिया को प्रमुख मानता है। इस कारण दोनों के आंकड़े थोड़ा अलग दिखते हैं।
दीर्घकालिक सुरक्षा को देखते हुए सोने को पोर्टफोलियो का स्थिर भाग बनाना फायदेमंद रहेगा। यदि अल्पकालिक लाभ की चाह है, तो मूल्य‑सही समय पर हिस्सेदारी घटाना सावधानीपूर्ण हो सकता है।
यदि RBI ब्याज दरें घटाती है तो ऋण लागत घटेगी, परन्तु वह आम तौर पर रुपये को मजबूत करेगी, जिससे सोने की कीमतें थोड़ी घट सकती हैं। उलट, यदि दरें बढ़ती हैं तो सोना सुरक्षित‑बंदोबस्त के रूप में अधिक आकर्षक बना रहेगा।
विभिन्न वित्तीय संस्थानों की भविष्यवाणी के अनुसार 2028 तक कीमतें 97,000‑100,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के बीच रह सकती हैं, जबकि कुछ उत्साही विश्लेषक 2026 में ही 1,25,000 रुपये की दहलीज़ बताते हैं।
5 जवाब
सोने की कीमतें इतनी तेज़ी से बढ़ रही हैं कि कई लोग डर के मारे बेच रहे हैं। मैं समझ सकता हूँ कि इस बढ़ोतरी से छोटे निवेशक परेशान होते हैं। पर साथ ही बात है कि सुरक्षित संपत्ति की मांग भी बढ़ी है। इसलिए शायद यह दिखा रहा है कि बाजार में अभी भी भरोसा है।
देश की स्वर्ण भंडार बढ़ाओ, ये कीमतें बाहर वालों की चाल हैं! 😡
देखो भाई, यही वो समय है जब विदेशी वित्तीय संस्थाएँ हमारे रुपये को नीचे ले जाने की कोशिश कर रही हैं। वे सोने को हथिया कर भारतीय बाजार में हेरफेर करेंगे, यही कारण है कीमतों का इतना उछाल। अगर सरकार सख्त रह नहीं तो ये स्थिति और बिगड़ सकती है। हमें इस आर्थिक जाल से बाहर निकलने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। बैंकों की दरें और RBI की नीति इस गड़बड़ी को और बढ़ा रहे हैं। यह सिर्फ बाजार नहीं बल्कि एक बड़ा साजिश है जो हमारे बचत को खा लेगा।
सलाह देता हूँ कि केवल अल्पकालिक लाभ देख कर उल्टा कदम न रखें। दीर्घकालीन पोर्टफोलियो में सोने का हिस्सा रखना समझदारी है। बाजार में अटकलें अक्सर धुंधली रहती हैं। इसलिए निरंतर जानकारी रखते हुए निर्णय लेना चाहिए।
सोने की कीमतों पर चर्चा करते समय हमें कई पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए। सबसे पहले, वैश्विक आर्थिक अस्थिरता ने सुरक्षित‑बंदोबस्त की मांग को तीव्र किया है। दूसरा, भारतीय रुपये की निरंतर depreciation ने विदेशी निवेशकों को सोने की ओर झुकाया है। तीसरा, दीवाली जैसे त्यौहारों में पारम्परिक रूप से सोने की खरीदारी बढ़ती है, जिससे मौसमी माँग में उछाल आता है। इसके अलावा, RBI की मौद्रिक नीति का भी महत्वपूर्ण प्रभाव है, क्योंकि ब्याज दरों में बदलाव सीधे निवेश की दिशा को बदलते हैं। इस साल के पहले आधे हिस्से में RBI ने नीति दर को स्थिर रखा, जिससे ऋण की लागत बढ़ी और लोग सोने को सुरक्षित विकल्प मानने लगे। नियतकालिक डेटा दिखाता है कि सितंबर में कीमतें सात लगातार हफ़्तों तक बढ़ती रही, जो एक स्पष्ट ट्रेंड को दर्शाता है। विशेषज्ञों की राय में, इस बढ़ोतरी का प्रमुख कारण अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जोखिम‑भरे निवेश से बचना है। हालांकि कुछ विश्लेषक इसे रूढ़िवादी आंकते हैं, लेकिन वास्तविक डेटा इस सिद्धान्त की पुष्टि करता है। सोने की कीमतें अगर 1.25 लाख तक पहुँच भी गईं, तो भी यह एक द्वि‑आधारीय कारणों से हुआ होगा – वैश्विक आर्थिक दबाव और घरेलू मौद्रिक स्थिति। आगे चलकर अगर अमेरिकी फेडरल रिज़र्व दरें घटाएगा, तो डॉलर कमजोर होगा और सोना और भी महंगा हो सकता है। उलट, यदि तेल की कीमतें गिरें और वैश्विक अर्थव्यवस्था स्थिर हो, तो सुरक्षित‑बंदोबस्त की माँग घट सकती है और कीमतें थोड़ा नीचे आ सकती हैं। निवेशकों को चाहिए कि वे अपने पोर्टफोलियो में सोने को एक हेज के रूप में रखें, लेकिन साथ ही अपने जोखिम सहनशीलता का भी आकलन करें। दीर्घकालिक दृष्टि से देखा जाए तो सोना अभी भी एक मूल्य‑सुरक्षित संपत्ति माना जाता है। इसलिए, अस्थायी कीमतों के उतार‑चढ़ाव को देखकर जल्दबाजी में निर्णय न लें। अंत में, यह समझना आवश्यक है कि बाजार की दिशा कई कारकों से जुड़ी होती है, और एक ही संकेत पर निर्णय लेना जोखिमभरा हो सकता है।