जब जेल की बात आती है तो आम लोग सख़्त दीवारें, एकरंगी भोजन और कठोर नियम सोचते हैं। लेकिन कुछ मामलों में क़ैदियों को विशेष सुविधा मिलती है – इसे ही अक्सर "जेल वीआईपी ट्रीटमेंट" कहा जाता है। सवाल यही उठता है: आखिर यह सुविधाएँ क्यों दी जाती हैं? क्या ये न्याय के बराबर हैं या बस अमीर‑धनी का खास हक?
भारत में जेल सुविधा का नियम मुख्यतः जेल सुधार अधिनियम, 1986 पर चलता है। इस एक्ट में क़ैदी की उम्र, स्वास्थ्य, या सुरक्षा को ध्यान में रखकर विशेष व्यवस्था करने की बात कही गई है। उदाहरण के तौर पर गंभीर बीमार क़ैदी को अस्पताल‑समान बिस्तर, डॉक्टर की निगरानी और साफ़‑सुथरा वातावरण दिया जाता है। यही नियम कभी‑कभी उच्च पदस्थ व्यक्तियों या राजनीतिक नेता पर लागू हो जाता है, जिससे "वीआईपी ट्रीटमेंट" का रूप बनता है।
व्यावहारिक तौर पर जेल प्रबंधक को यह तय करना होता है कि क़ैदी को किस स्तर की सुविधा चाहिए। अगर डॉक्टर ने गंभीर बीमार बताया तो उसे निजी कमरा मिल सकता है, लेकिन यदि कोई व्यक्ति सिर्फ राजनैतिक दबाव के कारण विशेष रूम मांगता है तो कोर्ट का आदेश या सरकारी निर्देश आवश्यक हो जाता है।
पिछले पाँच साल में कई हाई‑प्रोफ़ाइल केस सामने आए हैं। एक प्रसिद्ध मामला 2021 का था, जब एक राजनेता को जेल में एसी रूम और निजी टॉयलेट दिया गया। विरोधी दल ने इसे "सुविधा का दुरुपयोग" कहा और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने कहा कि केवल स्वास्थ्य कारणों से ही ऐसी सुविधा मिलनी चाहिए, नहीं तो यह न्याय के सिद्धांत को हानि पहुँचाता है।
दूसरी ओर, 2023 में एक दिव्यांग क़ैदी को विशेष हेल्थ‑केयर पैकेज मिला, जिससे उसकी जीवन गुणवत्ता में सुधार आया। इस केस ने दिखाया कि अगर सही कारण हो तो वीआईपी ट्रीटमेंट पूरी तरह वैध है और इसे नकारा नहीं जाना चाहिए।
आमतौर पर मीडिया इन मामलों को दो तरफ़ से देखता है – एक ओर अमीर‑धनी के लिए विशेष सुविधा, दूसरी ओर जरूरतमंद क़ैदी की मानवीय सुरक्षा। इस द्वंद्व ने जनता में जेल सुधार की मांग को तेज कर दिया है।
अगर आप या आपका कोई परिचित जेल में है और आपको लगता है कि सुविधा अनुचित रूप से दी जा रही है, तो सबसे पहले लिखित शिकायत जेल प्रबंधन को दें। यदि जवाब संतोषजनक न मिले तो राज्य उच्च न्यायालय के पास रिट अपीले कर सकते हैं। कई NGOs भी कानूनी मदद प्रदान करती हैं – उनका सहयोग लेने में देर नहीं करनी चाहिए।
दूसरी तरफ, अगर आप जेल सुधारकर्ता या सामाजिक कार्यकर्ता हैं, तो जागरूकता अभियान चलाकर सरकार से स्पष्ट नियम बनाने की मांग कर सकते हैं। ऐसे कदमों से न सिर्फ विशेष सुविधा के दुरुपयोग को रोका जा सकता है, बल्कि जरूरतमंद क़ैदी को सही मदद भी मिलती रहेगी।
संक्षेप में कहें तो जेल वीआईपी ट्रीटमेंट एक दोधारी तलवार है – यह स्वास्थ्य कारणों से जीवन बचा सकता है, लेकिन अगर इसे शक्ति के खेल में बदला जाए तो न्याय का संतुलन बिगड़ जाता है। इसलिए स्पष्ट नियम, पारदर्शी निगरानी और सख्त लागू करने की जरूरत है।
आगे बढ़ते हुए हमें यह समझना होगा कि जेल सिर्फ दंड नहीं, बल्कि पुनर्स्थापना भी है। तभी हम सही मायने में सुधार कर पाएँगे और वीआईपी ट्रीटमेंट को केवल "विशेषाधिकार" से हटाकर "मानवता की जरूरत" बना सकेंगे।
कन्नड़ अभिनेता दर्शन थुगुदीपा की जेल में ली गई वायरल फोटो और वीडियो कॉल ने वीआईपी ट्रीटमेंट के विवाद को जन्म दिया है। फोटो में दर्शन जेल के अंदर पार्क क्षेत्र में आराम करते दिख रहे हैं, जो विशेष व्यवहार का संकेत दे रहा है। इसके अतिरिक्त, वीडियो कॉल से भी इन्हें वीआईपी सुविधाएं मिलने की अटकलें तेज़ हो गई हैं। राज्य गृह मंत्री जी परामेश्वर ने जेल प्रशासन के सात कर्मियों को निलंबित कर दिया है।
पढ़ना