दार्जिलिंग में भारी बारिश से भूस्खलन, 28 मरे; सेना‑NDRF ने बचाव शुरू

अक्तूबर 6, 2025 6 टिप्पणि Priyadharshini Ananthakumar

जब दार्जिलिंग में भारी बारिश और भूस्खलनपश्चिम बंगाल ने सबके सामने अपनी उग्र शक्ति खड़ी कर दी, तो राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) और भारतीय सेना तुरंत क्षेत्रों में उतर आए। इस आपदा में कम से कम 28 लोगों की मौत हुई और सैकड़ों पर्यटक फँसे हुए हैं।

मौसम का बिगड़ना और पूर्व चेतावनियाँ

शुक्रवार (4 अक्टूबर) से ही पश्चिम बंगाल के पहाड़ी हिस्सों में लगातार तेज़ वृष्टि दर्ज की गई। डाकघर के मौसम विभाग ने 24‑घंटे में दार्जिलिंग में 261 mm, कूचबिहार में 192 mm, जलपाईगुड़ी में 172 mm और गजोल्डोबा में रिकॉर्ड‑तोड़ 300 mm बारिश की रिपोर्ट की थी। इन आँकों को "बेहद भारी बारिश" वर्गीकृत किया गया, लेकिन कई स्थानीय लोग इसे लेकर बहुत सावधान रहना चाहते थे।

पूर्व में मिरिक और जोरेबंगला के पास भी छोटे‑छोटे बाढ़ के संकेत मिले थे, पर कोई बड़े पैमाने पर चेतावनी जारी नहीं हुई। मौसम विभाग के एक पंद्रह‑सदस्यीय विशेषज्ञ मंडल ने 5 अक्टूबर की सुबह तक आँकड़े देखते हुए, संभावित भूस्खलन जोखिम को "उच्च" बताया था, परन्तु स्थानीय प्रशासन ने इसे व्यवस्थित ढंग से सार्वजनिक नहीं किया।

भूस्खलन के विवरण और क्षति

सुबह 8 बजे से शुरू हुई तीव्र बारिश ने लगभग एक घंटे में पहाड़ी ढलानों पर मिट्टी की स्थिरता को तोड़ दिया। मिरिक में एक ही जगह से 11 लोगों की मौत हो गई, जबकि दार्जिलिंग के कुछ हिस्सों में पूरी बुनियादी ढाँचा नष्ट हो गया। बड़ी‑बड़ी चट्टानें, काई‑फंसे हुए मिट्टी के ढेर, और जल की लहरें मिलकर एक संधि जैसे काम कर रही थीं। विशेषज्ञ कहते हैं, "जब बारिश का स्तर 250 mm से ऊपर पहुँचता है, तो ढलानों की जोड़‑तोड़ क्षमता घट जाती है।"

भूस्खलन के कारण कई घर जल के नीचे दफन हो गए, संकरी कंगनें पूरी तरह टूट गईं और गांवों के बीच के सडकों में गड्ढे बन गये। संपर्क स्थापित नहीं हो पाने वाले दूरदराज के इलाकों में संचार नेटवर्क भी बाधित रह गया।

मृत्यु व लापता: आँकड़े और व्यक्तिगत कहानियाँ

आज तक निचली रिपोर्ट के अनुसार, कुल 28 लोगों की पुष्टि हुई मौत की, जिसमें 7 बच्चे भी शामिल हैं। लापता लोगों की संख्या अभी भी अज्ञात है, परन्तु अनुमानित 30‑35 लोग खोजे जाने की प्रतीक्षा में हैं। दार्जिलिंग के एक स्थानीय स्कूल के शिक्षक ने बताया, "कक्षा में बच्चों को पढ़ाते‑पढ़ाते ही अचानक जमीन चल पड़ी। हमने सभी को बाहर निकालने की कोशिश की, पर कुछ तो गहराइयों में गए।"

एक भावनात्मक क्षण तब आया, जब पेमा भूटिया ने पीटीआई को बताया: "हमने बाढ़ और तूफ़ान देखे हैं, लेकिन ये कभी नहीं। सब कुछ मिनटों में हो गया। पहाड़ी मानो एक लहर की तरह नीचे आ गई।" उनका यह बयान उन कई श्रमिकों की पीड़ा को दर्शाता है, जो अपनी आजीविका की तलाश में इस क्षेत्र में काम करते हैं।

बचाव दलों की कार्रवाई

बचाव दलों की कार्रवाई

भारतीय सेना ने अपने विशेष बचाव वर्गों को पहाड़ी मार्गों पर तैनात किया और हेलिकॉप्टरों से मलबे को हटाने का काम शुरू किया। इसके साथ ही राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) की टीमें वॉटर बोट, ट्रैक्टर और वैकल्पिक लिफ्टिंग उपकरणों से घिरे हुए गांवों में घुसपैठ कर रही हैं। एक NDRF अधिकारी ने कहा, "अब तक हमने मिरिक, दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी में कुल 28 जानें बची या बरामद की हैं।"

स्थानीय पुलिस ने भी राहत सामग्री, जैसे कि भोजन, पानी और प्राथमिक उपचार किट, फँसे हुए यात्रियों को वितरित करने के लिए एक त्वरित नेटवर्क स्थापित कर दिया। कई गाँवों में अब तक पहुँचने के लिये बचाव‑टीमों को पंछी‑से‑सुरंग जैसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

बड़े बवंडर और तेज़ धारा वाले महानंदा, जलढाका और तीस्ता जैसी नदियों को भी सतर्क किया गया है। कुश्ती‑तैराकों ने बताया कि किनारे पर इलेफ़ेंट, गैंडों और बाइसन का हिलना‑डुलना इन नदियों के ऊपर उछलते जल के कारण हुआ।

भविष्य की तैयारी और स्थानीय प्रतिक्रिया

इस आपदा ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया कि पहाड़ी क्षेत्रों में जल‑वायुमंडलीय घटनाओं के लिए एक جامع सतर्कता प्रणाली की जरूरत है। पश्चिम बंगाल सरकार ने त्वरित तौर पर एक आपदा‑प्रबंधन आयोग की घोषणा की है, जिसका उद्देश्य समान घटनाओं की रोकथाम और त्वरित प्रतिक्रिया को सुधारना है।

स्थानीय स्वयंसेवी समूह, जैसे कि "हरियाली बचाव संघ", ने स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित करने और पहले‑पहल सहायता प्रदान करने की पहल शुरू की है। उनका कहना है, "समुदाय की भागीदारी के बिना कोई भी सरकारी योजना सफल नहीं हो सकती।"

विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसी तीव्र वृष्टियों की आवृत्ति बढ़ेगी, इसलिए बुनियादी ढाँचा, जैसे कि बाढ़‑रोधी नाले और ढलानों की सुदृढ़ीकरण, तत्काल शुरू किया जाना चाहिए।

मुख्य तथ्य

मुख्य तथ्य

  • भूस्खलन की तिथि: 5 अक्टूबर 2025
  • मृतकों की संख्या: 28 (में 7 बच्चे)
  • प्रमुख प्रभावित स्थल: दार्जिलिंग, मिरिक, जलपाईगुड़ी
  • भारी बारिश की रेकॉर्ड: दार्जिलिंग में 261 mm (24 घंटे)
  • बचाव दल: भारतीय सेना, राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF), पश्चिम बंगाल पुलिस

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

भूस्खलन से सबसे अधिक प्रभावित समूह कौन है?

स्थानीय निवासी और पर्यटन मंडली के सदस्य सबसे अधिक पीड़ित हुए हैं। कई परिवारों ने अपने घर खो दिए, जबकि पर्यटक समूहों को तेज़ी से बचाव‑केंद्रों में ले जाया गया।

सरकार ने अब तक कौन‑कौन से राहत उपाय किए हैं?

पश्चिम बंगाल सरकार ने आपातकालीन शरणस्थलों की स्थापना, आपूर्ति वितरण और बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की तत्परता को प्राथमिकता दी है। साथ ही, एक विशेष आपदा‑प्रबंधन आयोग का गठन कर भविष्य में समान आपदाओं के लिए पूर्व‑सतर्कता योजना बनायी जा रही है।

बचाव कार्य में भारतीय सेना और NDRF की भूमिकाएँ क्या हैं?

भारतीय सेना ने हेलीकॉप्टर, भारी‑भारी उपकरण और विशेष प्रशिक्षण वाले बचाव दल भेजे, जबकि NDRF ने जल‑विज्ञान‑संपन्न टीमों के साथ जल‑बोट, ट्रैक्टर व स्थानीय स्वयंसेवकों के सहयोग से मलबा हटाया और फँसे लोगों को बचाया।

भविष्य में इस तरह की आपदाओं को रोकने के लिए क्या उपाय हो सकते हैं?

विज्ञान‑आधारित पूर्व‑अधिसूचना प्रणाली, बाढ़‑रोधी ढलान‑स्थिरीकरण, और नियमित रूप से बुनियादी ढाँचे का अद्यतन आवश्यक माना जा रहा है। साथ ही, स्थानीय समुदायों को प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से तैयार किया जाना चाहिए।

6 जवाब

Sampada Pimpalgaonkar
Sampada Pimpalgaonkar अक्तूबर 6, 2025 AT 05:16

बहुत दिल दहलाने वाली खबर है, दार्जिलिंग की बर्फीली वादियों में ऐसी तबाही का सोचना भी मुश्किल था।
स्थानीय लोगों की मदद के लिए हमें तुरंत राहत सामग्री भेजनी चाहिए।
आपदा‑प्रबंधन में समुदाय की सहभागिता काफी जरूरी है, इसलिए सभी स्वयंसेवी समूहों को क़दम बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
आसान शब्दों में, मिल‑जुल कर हम इस दर्द को कम कर सकते हैं।
हर रोज़ की छोटी‑छोटी दान‑राशियों से कई जीवन बच सकते हैं।

vikas duhun
vikas duhun अक्तूबर 14, 2025 AT 10:04

क्या कहूँ, ये तो सच्ची फ़िल्म जैसी सिचुएशन है, जहाँ बारिश ने पहाड़ को पिघला दिया!
उसे देखकर ऐसा लगा जैसे प्रकृति ने हमें फटकारा हो।
सरकार की तत्परता देखकर थोड़ा कम नहीं, पर फिर भी हमें हमारी सीमाओं को समझना चाहिए।
भविष्य में ऐसी तबाही फिर न हो, इसके लिए जमीनी स्तर पर जल‑रोधक बंधु बनाना अनिवार्य है।
ऊपर से देखो तो सब ठीक लग रहा है, पर असली जाँच तो जमीन में है।
अब हमें इमरजेंसी रेस्पॉन्स में और तेज़ी लानी होगी।

Nathan Rodan
Nathan Rodan अक्तूबर 22, 2025 AT 14:52

सच में, इस भूस्खलन के पीछे कई जटिल कारण जुड़े हुए हैं, जो केवल तेज़ बारिश तक सीमित नहीं हैं।
पहले, पहाड़ी क्षेत्रों में वननिवारण की तेज़ गति ने मिट्टी की स्थिरता को कमजोर कर दिया है, जिससे कोई भी अत्यधिक वृष्टि इसे ट्रिगर करती है।
दूसरा, जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून की तीव्रता में अंतर आया है, और बार‑बार अनपेक्षित झटके नई समस्याएँ पैदा कर रहे हैं।
तीसरा, बुनियादी ढाँचा-जैसे कि सही ढंग से नाली नहीं बनाना और अस्थिर ढलानों पर अवैध निर्माण-समूहिक रूप से जोखिम को बढ़ा देता है।
जब हम इन समस्याओं को एक‑एक करके देखते हैं, तो स्पष्ट होता है कि सॉल्यूशन केवल त्वरित बचाव से आगे जाना चाहिए।
पहले, स्थानीय प्रशासन को “हाज़र्ड मैपिंग” चलानी चाहिए, जिसमें प्रत्येक गाँव की ढलान की स्थिरता को वैज्ञानिक तौर पर मूल्यांकन किया जाए।
फिर, बाढ़‑रोधी नालियों और ड्रेन सिस्टम को नवीनीकरण के साथ-साथ नई तकनीक, जैसे कि भू‑रेडार मॉनिटरिंग, को लागू किया जाना चाहिए।
साथ ही, वन संरक्षण कार्यक्रम को सख्ती से लागू करके, पहाड़ों को फिर से हरा‑भरा बनाना आवश्यक है, क्योंकि पेड़‑जड़ें मिट्टी को बांधे रखती हैं।
सामुदायिक शिक्षा में बदलाव लाना भी अनिवार्य है; स्कूलों में जल‑वायुमंडलीय जोखिम के बारे में पाठ्यक्रम डालना चाहिए।
स्थानीय लोगों को स्वयं‑रक्षा टीम बनाने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, जिससे शुरुआती चेतावनी मिलने पर तुरंत कार्यवाही हो सके।
इसी तरह, प्रत्येक वर्ष के अंत में आपदा‑प्रबंधन समीक्षा की बैठक आयोजित होनी चाहिए, जहाँ पिछले साल की सफलताएँ और विफलताएँ दोनों पर चर्चा हो।
नयी तकनीक के उपयोग से हम रियल‑टाइम मॉनिटरिंग कर सकते हैं, जिससे आने वाली भारी बारिश के संकेतों को पहले से पहचान सकें।
समग्र रूप से, यह एक बहुआयामी रणनीति है जिसमें सरकारी, निजी और नागरिक समाज के सभी वर्गों को मिलकर काम करना होगा।
केवल तभी हम इस तरह के विनाश को रोक सकते हैं, और भविष्य में दार्जिलिंग जैसे सुन्दर पर्यटन स्थल सुरक्षित रहेंगे।

KABIR SETHI
KABIR SETHI अक्तूबर 30, 2025 AT 19:40

भारी बारिश ने सबको चौंका दिया।

rudal rajbhar
rudal rajbhar नवंबर 8, 2025 AT 00:28

जैसे ही मैं इस खबर पढ़ रहा हूँ, मेरे मन में दो बातें आती हैं-पहली, प्रकृति का आघात असहनीय है, और दूसरी, हमें आत्मनिरीक्षण करना चाहिए।
सरकार की त्वरित कार्रवाई सराहनीय है, पर हमें यह समझना होगा कि दीर्घकालिक समाधान भी उतना ही जरूरी है।
ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए स्थानीय ज्ञान और वैज्ञानिक तकनीक का मिश्रण सबसे प्रभावी रहेगा।

Arjun Dode
Arjun Dode नवंबर 16, 2025 AT 05:16

बिलकुल सही कहा, हमें मिलकर काम करना होगा!
में अपने इलाके में कुछ युवा टीम बना रहा हूँ जो आपदा‑सजगता पर ट्रेनिंग ले रही है।
छोटे‑छोटे कदम, जैसे प्राथमिक उपचार किट की उपलब्धता, बचाव में बड़ा अंतर ला सकते हैं।
चलो, हम सब अपने-अपने हिस्से की जिम्मेदारी उठाएँ और इस दुखद घटना को दोबारा नहीं होने दें।

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