जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है क्योंकि नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के प्रमुख फारूक अब्दुल्ला ने चौंकाने वाली घोषणा की है। फारूक अब्दुल्ला ने अपने बेटे उमर अब्दुल्ला की मुख्यमंत्री पद पर वापसी का ऐलान किया है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों की गिनती जोर-शोर से चल रही है। एनसी-कांग्रेस गठबंधन इस समय अपनी स्थिति को काफी मजबूत कर रहा है। चुनावों के नतीजे अब तक यही संकेत दे रहे हैं कि यह गठबंधन बहुमत के जादुई आंकड़े को पार कर लेगा।
उमर अब्दुल्ला की पॉलिटिकल ग्राउंडिंग किसी परिचय की मुहताज नहीं है। एक अनुभवी नेता के रूप में वे पहले भी जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। जनवरी 2009 से मार्च 2015 के दौरान उन्होंने इस राज्य का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। उनकी अनुभवी दृष्टि और विकास के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को देखते हुए उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनाए जाने की घोषणा की गई है। वर्तमान चुनावी परिदृश्य में गंदरबल और बडगाम निर्वाचन क्षेत्रों में उनकी बढ़त ने उनकी राजनीतिक लोकप्रियता को एक बार फिर से स्थापित कर दिया है।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा की 90 सीटों में से बहुमत के लिए 46 सीटों की आवश्यकता होती है। एनसी-कांग्रेस गठबंधन ने अब तक 47 से 52 सीटों पर बढ़त बना रखी है। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अब तक आठ सीटें जीत ली हैं और अन्य 33 सीटों पर वे आगे चल रहे हैं। इसके अलावा, उनके सहयोगी दल कांग्रेस ने एक सीट पर जीत हासिल की है और पांच अन्य सीटों पर बढ़त बनाई हुई है। चुनाव आयोग के ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 10 सीटें जीत ली हैं और 19 अन्य सीटों पर बढ़त बनाए हुए हैं।
इस चुनावी महासंग्राम में हर पार्टी ने अपनी रणनीतियों और विचारधारा के साथ अपने विरोधियों को चुनौती दी है। उमर अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस ने लोकल इश्यूज़ पर फोकस करते हुए विकास, रोजगार और सुरक्षा जैसे मुद्दों को प्राथमिकता दी। उन्होंने जमीनी स्तर पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए ऐतिहासिक प्रयास किए हैं। साथ ही, उनके खिलाफ दृढ़ता से खड़ा करने के लिए इंडस्ट्री से जुड़े पहलुओं और बुनियादी संरचना पर भी ध्यान केंद्रित किया गया।
इस चुनाव में अन्य दलों ने भी अपनी पूरी ताकत झोंकी है। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), जो कि अबदुल्ला के विरुद्ध एक प्रमुख राजनीतिक ताकत है, ने भी गंदरबल और बडगाम क्षेत्रों में जोरदार मुकाबले किए हैं। पीडीपी के उम्मीदवार, башीर अहमद मीर और अगा सैयद मुन्तज़िर मेहदी के खिलाफ उमर अब्दुल्ला की बढ़त ने एनसी के समर्थन में एक नया उत्साह भर दिया है।
जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला की वापसी के साथ ही राजनीतिक विशेषज्ञ इस घटनाक्रम को घाटी में स्थिरता और विकास के नए चरण के रूप में देख रहे हैं। उनके नेतृत्व में राज्य में विभिन्न सामाजिक और आर्थिक परियोजनाओं को गति मिलने की उम्मीद है, जो राज्य के नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार लाएगा। इस चुनावी परिणाम का दीर्घकालिक प्रभाव क्या होगा, यह समय ही बताएगा।
9 जवाब
उमर का रिटर्न वही पुराने वादे दोहराएगा
इस बार की तैयारी में लगता है कि बस दिखावा नहीं, प्रैक्टिकल पहल भी है 😊 विकास की बातों को सिर्फ शब्द नहीं, जमीन पर उतारेंगे तो ही फर्क पड़ेगा।
भाईयो और बहनो, उमर अब्दुल्ला का फिर से सत्ता में आना जमीनी राजनीति का पूराण सिद्धान्त दर्शाता है कि कभी‑कभी पुरानी सोच नई लहर को भी रोक नहीं पाती। उनके बिनैट शुरूआती हरफजोलियों को देख कर लगता है कि समय ने उन्हें फिर से धक्का दिया है।
जम्मू‑केरन में उमर अब्दुल्ला की वापसी को लेकर राजनीति में एक तीव्र लहर चल रही है।
उनका नाम सुनते ही कई लोग पिछले प्रशासन की यादों में खो जाते हैं।
परन्तु यह सच है कि विकास के कुछ बड़े प्रोजेक्ट्स उनके समय में ही शुरू हुए थे।
अब जब वे फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे तो इन प्रोजेक्ट्स को तेज़ी से आगे बढ़ाने की उम्मीद है।
साथ ही रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी और विद्युत् सप्लाई में सुधार का वादा भी किया गया है।
वहीं, विपक्षी दल इस बात को लेकर सतर्क हैं कि शक्ति का दोबारा केंद्रित होना सत्ता के दुरुपयोग का कारण बन सकता है।
इतिहास ने हमें दिखाया है कि लंबे समय तक सत्ता में रहने वाले नेता अक्सर लोकतांत्रिक मूल्यों को दबा देते हैं।
इसलिए नागरिकों को यह देखना होगा कि क्या उमर अब्दुल्ला अपने वादों को शब्दों तक सीमित रखेंगे या वास्तविक कार्य करेंगे।
अभी के सर्वेक्षणों से पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में उनका समर्थन मजबूत है, खासकर गंदरबल और बडगाम में।
शहरी इलाकों में मतदाता वर्ग अभी भी असंतोष का इशारा कर रहा है, विशेषकर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के संबंध में।
क्या यह दोहरी रणनीति काम करेगा, यह आने वाले चुनाव परिणामों पर निर्भर करेगा।
देश के विभिन्न हिस्सों में यह चर्चा चल रही है कि जंक्शन पॉइंट पर कौन सा दल अधिक स्थिरता लाएगा।
यदि उमर अब्दुल्ला वास्तविक रूप से विकास को गति देंगे तो आर्थिक सुधार की धारा तेज़ हो सकती है।
वहीं यदि वह केवल सत्ता को संभालने में लगे रहें तो असंतोष और बढ़ेगा।
अंत में, राजनीति हमेशा ही राजनीति रहती है और जनता को ही निर्णय लेना है कि कौन-सा रास्ता उनके हित में है।
वाह! तुम्हारी आशावादी बातों ने तो मेष में नई बासुरी बजा दी 🎶 अब देखेंगे कि क्या ये संगीत वास्तविक कार्यों में बदलता है।
😂 वही तो! फिर से वही वही बातें, लेकिन इसबार क्या अलग होगा?
अगर आप डेटा देखना चाहते हैं तो मैं कुछ लिंक शेयर कर सकता हूँ जहाँ वर्तमान एग्ज़िट प्योलिसी और चुनावी आँकड़े दिखे हैं, इससे समझना आसान होगा कि उमर की वापसी का वास्तविक असर क्या हो सकता है।
सच बताऊं तो इस लंबी बातों में बस एक ही बात छिपी है-पावर गेम। हर बड़े बयानों के पीछे वही छिपा होता है, और जनता अक्सर इसका शिकार बनती है।
क्या तुम्हें नहीं लगता कि इस बार कोई गुप्त एजेंडा काम कर रहा है? मीडिया को नियंत्रित करके लोग इस रिटर्न को स्वाभाविक बना रहे हैं, पर असली इरादा तो कुछ और ही है।