भ्रष्टाचार का मतलब है जब कोई अपना पद, शक्ति या संबंध का दुरुपयोग कर पैसे, वरदान या फायदा लेता है। रोज़ नई खबरें आती हैं – चाहे वो सरकारी योजना में घोटाला हो या किसी छोटे विभाग में रिश्वत लेना। अक्सर लोगों को लगता है कि यह बहुत बड़ा मुद्दा है और कुछ नहीं कर सकते, लेकिन सच में छोटे‑छोटे कदम से बदलाव आ सकता है।
पहला कारण है पारदर्शिता की कमी। जब प्रक्रियाओं में खुलापन नहीं होता, तो कुछ लोग छुप‑छुप कर अपना फायदा बनाते हैं। दूसरा कारण है लोभ और आर्थिक दबाव – कई लोग कम वेतन या नौकरी की असुरक्षा से जल्दी‑जल्दी गलत रास्ते पकड़ लेते हैं। तीसरा कारण बेपरवाह निगरानी है; अगर ऊपर से जांच नहीं हो रही तो चूक‑छूट बनती है। इन सबका मिलाजुला असर भ्रष्टाचार को आगे बढ़ाता है।
सबसे आसान उपाय है सूचना का अधिकार (RTI) फ़ाइल करना। जब आप किसी सरकारी विभाग से जानकारी मांगते हैं तो वे जवाब देने के लिए बाध्य होते हैं, जिससे छुपे हुए लेन‑देनों का खुलासा हो सकता है। दूसरा, ऑनलाइन सेवाओं का उपयोग करें – जैसे डिजिटल भुगतान या ई‑गवर्नेंस पोर्टल, जहाँ कागजी काम कम हो जाता है और धोखाधड़ी की संभावना घटती है। तीसरा, साक्षरता बढ़ाएँ, विशेषकर ग्रामीण इलाकों में, क्योंकि जानकार लोग आसानी से बेईमानी को पकड़ लेते हैं।
सरकार की भी ज़िम्मेदारी है. whistleblower (सचेतन) को सुरक्षा देनी चाहिए और भ्रष्ट मामलों को तेजी से जांचना चाहिए। जब कोई व्यक्ति बिना डरे सच्चाई बताए तो छोटे‑छोटे घोटालों से बड़ी सक्कड़ रुक सकती है।
अगर आप अपने कार्यस्थल या आसपास किसी भ्रष्ट व्यवहार को देखते हैं, तो तुरंत संबंधित अधिकारियों को बतायें। सोशल मीडिया पर बात करना भी मददगार हो सकता है, लेकिन सच्ची जानकारी और दावे के साथ। याद रखें, एक छोटा कदम भी बड़े बदलाव का हिस्सा बन सकता है।
अंत में, हमें यह समझना चाहिए कि भ्रष्टाचार सिर्फ सरकार या बड़े लोगों की समस्या नहीं, यह हर नागरिक की जिम्मेदारी है। जब हम सच्चाई के लिए खड़े होते हैं, तो भ्रष्टाचार का दायरा घटता है। तो अगली बार जब आप किसी अनियमित चीज़ को देखें, तो उसे चुप न बैठें – अपनी आवाज़ उठाएँ और बदलाव की शुरुआत करें।
नेपाल में सोशल मीडिया पर कड़ी पाबंदियों और बेरोजगारी के बीच युवाओं का गुस्सा बढ़ा है। पूर्व उप-प्रधानमंत्री उपेन्द्र यादव ने सरकार पर भ्रष्टाचार मामलों में पक्षपात का आरोप लगाया और कहा कि जवाबदेही चयनित लोगों तक सीमित है। काठमांडू में पत्रकारों ने बैन के खिलाफ प्रदर्शन किया। सुप्रीम कोर्ट ने 2007 के गौर कांड की जांच फिर से खोलने का आदेश भी दिया है।
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