17 नवंबर, 2025 को टेन्नेको क्लीन एयर इंडिया लिमिटेड का आईपीओ आवंटन पूरा हो गया, लेकिन जो खबरें बाजार में फैल रही थीं — वो अलग थीं। एक तरफ ग्रे मार्केट प्रीमियम (GMP) ₹122 तक पहुँच गया, जो 5 दिन में 60% बढ़ गया — दूसरी तरफ, आईपीओ का सब्सक्रिप्शन केवल 0.45 गुना रहा। यानी निवेशकों ने शेयर खरीदने के लिए बस चार फीसदी ही ऑर्डर दिए। फिर भी, बाजार तैयार है — 19 नवंबर को बीएसई और एनएसई पर लिस्टिंग के लिए।
ग्रे मार्केट में टेन्नेको क्लीन एयर के शेयरों की कीमत ₹75 से बढ़कर ₹122 हो गई। यह एक बड़ा संकेत है कि कुछ निवेशक, खासकर छोटे ट्रेडर्स और गैर-संस्थागत लोग, लिस्टिंग के बाद बड़ा मुनाफा कमाने की उम्मीद में हैं। लेकिन यही बात जितनी उत्साहजनक लगती है, उतनी ही अजीब भी है। क्योंकि आधिकारिक डेटा के मुताबिक, इस आईपीओ को सिर्फ 0.45 गुना सब्सक्राइब किया गया। यानी लगभग 95% ऑर्डर खाली रहे। इसका मतलब है — जो शेयर बाजार में बेचे जाने वाले हैं, वो निवेशकों के पास नहीं हैं। वो सिर्फ ग्रे मार्केट में ट्रेड हो रहे हैं।
यह आईपीओ किसी नए पैसे के लिए नहीं थी। यह एक टेन्नेको क्लीन एयर इंडिया लिमिटेड के मालिकों का एक्जिट ऑफर था। कंपनी ने कोई नया शेयर जारी नहीं किया। बल्कि, अपने 90,68,0101 शेयर बेच दिए — जिनकी कुल कीमत ₹3,600 करोड़ थी। ये सभी शेयर टेन्नेको इंक, अमेरिका स्थित मातृ कंपनी के पास थे। इसका मतलब: अगर आप आज इस कंपनी में निवेश करते हैं, तो आपका पैसा कंपनी के बैंक खाते में नहीं जाएगा। वो सीधे अमेरिकी निवेशकों के बैंक खातों में जाएगा।
टेन्नेको क्लीन एयर इंडिया लिमिटेड भारत में ऑटोमोबाइल निर्माताओं के लिए एक्सहॉस्ट और इमिशन कंट्रोल सिस्टम बनाती है। यानी वो वो टेक्नोलॉजी देती हैं जिससे कारें भारतीय बाहर स्टेज VI (BS-VI) इमिशन स्टैंडर्ड्स को पूरा कर पाती हैं। ये कंपनी 2018 में बनी थी, और अब तक अपने मातृ कंपनी के बिना कुछ नहीं कर सकती। उसे टेक्निकल डिज़ाइन, पेटेंट, ब्रांड लाइसेंस — सब कुछ अमेरिका से मिलता है। इसका मतलब: अगर टेन्नेको इंक ने कह दिया कि अब हम इन टेक्नोलॉजीज को नहीं देंगे, तो ये कंपनी बंद हो सकती है।
इस कंपनी के तीन बड़े खतरे हैं — और सब गंभीर हैं। पहला: उनके पास कोई फर्म वॉल्यूम कमिटमेंट नहीं है। यानी ऑटो कंपनियाँ (जैसे मारुति, हुंडई) ने नहीं कहा कि हम आगे दो साल तक आपके एक्सहॉस्ट सिस्टम खरीदेंगे। दूसरा: ये कंपनी सिर्फ इमिशन नियमों पर टिकी है। अगर सरकार बीएस-वी के बाद नए नियम लाने में देर कर दे, तो डिमांड गिर जाएगी। तीसरा: वो किसी एक बड़ी कंपनी पर पूरी तरह निर्भर है। इस तरह की कंपनियाँ आमतौर पर लिस्टिंग के बाद गिर जाती हैं। बाजार इसे जानता है।
ग्रे मार्केट प्रीमियम ₹122 है, लेकिन ये असली कीमत नहीं है। ये एक अनुमान है — जिसे गैर-आधिकारिक लोग बनाते हैं। अगर लिस्टिंग पर शेयर ₹450 पर खुले, तो ये एक अच्छा मुनाफा होगा। लेकिन अगर ये ₹397 या उससे भी कम पर खुल गए, तो ग्रे मार्केट में जिन्होंने शेयर खरीदे थे, वो घाटे में निकलेंगे। यही कारण है कि कई एक्सपर्ट्स इस आईपीओ को "रिस्की गेम" कह रहे हैं। बाजार का अंदाज़ा है: ये कंपनी लिस्ट होगी, लेकिन लंबे समय तक नहीं चलेगी।
अगर आप एक शॉर्ट-टर्म ट्रेडर हैं, तो लिस्टिंग के दिन शेयर खरीदने का रिस्क ले सकते हैं। लेकिन अगर आप लंबे समय तक रखना चाहते हैं — तो नहीं। ये कंपनी किसी नए टेक्नोलॉजी का निर्माता नहीं है। वो सिर्फ एक लाइसेंसी है। और लाइसेंसी कंपनियाँ बाजार में अक्सर गिर जाती हैं।
आईपीओ सिर्फ एक्जिट ऑफर था — नए पैसे की जरूरत नहीं थी। निवेशकों को लगा कि कंपनी बहुत ज्यादा मातृ कंपनी पर निर्भर है, और उसके पास कोई फर्म ऑर्डर नहीं है। इसलिए अधिकांश निवेशकों ने इसे नजरअंदाज़ कर दिया। ग्रे मार्केट में ट्रेड होने का मतलब नहीं कि आईपीओ सफल हुई।
यह एक अनौपचारिक अनुमान है कि लिस्टिंग के बाद शेयर कितने ऊपर जाएगा। ₹122 का प्रीमियम मतलब है कि लोग उम्मीद कर रहे हैं कि शेयर ₹519 (₹397 + ₹122) पर खुलेगा। लेकिन ये केवल भावनात्मक अनुमान है — असली कीमत लिस्टिंग डे के बाद ही पता चलेगा।
हाँ, लेकिन सिर्फ एक तरफ से। ये दिखाता है कि भारत में इमिशन टेक्नोलॉजी की मांग है। लेकिन अगर ये कंपनी अपने आप में नहीं बन सकती, तो ये सिर्फ एक आयातित टेक्नोलॉजी का रिप्रेजेंटेटिव है। भारतीय इंडस्ट्री के लिए असली जीत तब होगी जब कोई भारतीय कंपनी ऐसी टेक्नोलॉजी खुद बनाए।
MUFG Intime जापान की बड़ी बैंकिंग कंपनी Mitsubishi UFJ की सहायक कंपनी है। इसने इस आईपीओ के आवंटन और शेयर अलोकेशन के लिए प्लेटफॉर्म प्रदान किया है। निवेशक अपना आवंटन बीएसई, एनएसई और MUFG Intime की वेबसाइट पर चेक कर सकते हैं। ये कोई इंवेस्टमेंट बैंक नहीं है, बल्कि एक टेक्निकल पार्टनर है।
नहीं। कंपनी के पास कोई अपना R&D नहीं है, कोई ब्रांड नहीं है, और कोई फर्म ऑर्डर नहीं है। इसकी कमाई सिर्फ बीएस-वी नियमों पर टिकी है। अगर भारत अगले 5 साल में बीएस-वीआईआई लाता है, तो ये कंपनी फिर से अमेरिका पर निर्भर होगी। लंबी अवधि के निवेश के लिए ये एक खतरनाक विकल्प है।
हाँ, लेकिन खतरनाक रुझान। ये दिखाता है कि भारतीय निवेशक अब ब्रांड, टेक्नोलॉजी या फाइनेंशियल स्ट्रेंथ की बजाय ग्रे मार्केट प्रीमियम पर आधारित निवेश कर रहे हैं। ये एक बुलबुला का संकेत हो सकता है — जहां लोग असली डेटा को नजरअंदाज़ कर रहे हैं। इस तरह के आईपीओ भविष्य में बड़े नुकसान का कारण बन सकते हैं।
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